________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रत्नमंडनगणि ने उपदेशतरङ्गिणी आदि ग्रन्थों की भी रचना की है। मुग्धमेधालंकार-वृत्तिः
'मुग्धमेधालंकार' पर किसी विद्वान् ने टीका लिखी है।' काव्यलक्षण:
अज्ञातकर्तृक 'काव्यलक्षण' नामक २५०० श्वोक-परिणाम एक कृति का उल्लेख जैन ग्रंथावली, पृ० ३१६ पर है। कर्णालंकारमञ्जरी:
त्रिमल्ल नामक विद्वान् ने 'कर्णालंकारमञ्जरी' नामक अलंकार-ग्रंथ की रचना की है, ऐसा उल्लेख जैन ग्रंथावली पृ० ३१५ में है। प्रक्रान्तालंकार-वृत्ति:
जिनहर्ष के शिष्य ने 'प्रक्रान्तालंकार-वृत्ति' नामक ग्रन्थ की रचना की है, जिसकी हस्तलिखित ताडपत्रीय प्रति पाटन के भंडार में विद्यमान है। इसका उल्लेख जिनरत्नकोश, पृ० २५७ में है। अलंकार-चूर्णि: ___ 'अलंकार-चूर्णि' नामक ग्रंथ किसी अज्ञातनामा रचनाकार की रचना है, जिसका उल्लेख जिनरत्नकोश, पृ० १७ में है। अलंकारचिंतामणि :
दिगंबर विद्वान् अजितसेन ने 'अलंकारचिंतामणि नामक ग्रंथ की रचना १८ वीं शताब्दी में की है। उसमें पांच परिच्छेद हैं और विषय-वर्णन इस प्रकार है:
१. कविशिक्षा, २. चित्र (शब्द)-अलंकार, ३. यमकादिवर्णन, ४. अर्थालंकार और ५. रस आदि का वर्णन । अलंकारचिंतामणि-वृत्ति ____ 'अलंकारचिंतामणि' पर किसी अज्ञातनामा विद्वान् ने वृत्ति की रचना की है, यह उल्लेख जिनरत्नकोश, पृ० १७ में है । १. इसकी ३ पत्रों की प्रति भांडारकर गोरियंटल इन्स्टीव्यट में है। २. यह ग्रंथ सोलापुर से प्रकाशित हो गया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org