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मंत्री मण्डन श्रीमालवंशीय सोनगरा गोत्र के थे । वे जालोर के मूल निवासी थे परन्तु उनकी सातवीं-आठवीं पीढ़ी के पूर्वज मांडवगढ़ में आकर रहने लगे थे। उनके वंश में मंत्री पद भी परंपरागत चला आता था। मंडन भी आलमशाह (हुशंगगोरी-वि० सं० १४६१-१४८८) का मंत्री था। आलमशाह विद्याप्रेमी था अतः मंडन पर उसका अधिक स्नेह था । वह व्याकरण, अलंकार, संगीत और साहित्यशास्त्र में प्रवीण तथा कवि था। , उसका चचेरा भाई धनद भी बड़ा विद्वान् था। उसने भर्तृहरि की 'सुभाषितत्रिशती' के समान नीतिशतक, शृंगारशतक और वैराग्यशतक-इन तीन शतकों की रचना की थी।
उनके वंश में विद्या के प्रति जैसा अनुराग था वैसी ही धर्म में उत्कट श्रद्धाभक्ति थी । वे सब जैनधर्मावलम्बी थे। आचार्य जिनभद्रसूरि के उपदेश से मंत्री मण्डन में प्रचुर धन व्यय करके जैन सिद्धांत-ग्रन्थों का सिद्धान्तकोश लिखवाया था।
मंत्री मंडन विद्वान् होने के साथ ही धनी भी था। वह विद्वानों के प्रति अत्यन्त स्नेह रखता था और उनका उचित सम्मान कर दान देता था।
महेश्वर नामक विद्वान् कवि ने मंडन और उसके पूर्वजों का ब्यौरेवार वर्णन करनेवाला 'काव्यमनोहर' ग्रन्थ लिखा है। उससे उसके जीवन की बहुतकुछ बातों का पता लगता है। मंडन ने अपने प्रायः सब ग्रन्थों के अन्त में मण्डन शब्द जोड़ा है। मंडन के अन्य ग्रन्थ ये हैं :
१. सारस्वतमंडन, २. उपसर्गमंडन, ३. शृंगारमंडन, ४. काव्यमंडन, ५. चंपूमंडन, ६. कादम्बरीमंडन, ७. संगीतमंडन, ८. चंद्रविजय, ९. कविकल्पमस्कन्ध । काव्यालंकारसार: ___ कालिकाचार्य-संतानीय खंडिलगच्छीय आचार्य जिनदेवसूरि के शिष्य आचार्य भावदेवसूरि ने पंद्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में 'काव्यालंकारसार" नामक ग्रन्थ की रचना की है। इस पद्यात्मक कृति के प्रथम पद्य में इसका 'काव्यालंकारसारसंकलना', प्रत्येक अध्याय की पुष्पिका में 'अलंकारसार' और आठवें अध्याय के अंतिम पद्य में 'अलंकारसंग्रह' नाम से उल्लेख किया है:
१. यह ग्रन्थ 'अलंकारमहोदधि के अन्त में गायकवाद मोरियण्टल सिरीज,
बड़ौदा से प्रकाशित हुभा है।
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