________________
१२०
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
आचार्य भावदेवेन प्राच्यशास्त्रमहोदधेः । आदाय साररत्नानि कृतोऽलंकारसंग्रहः ||
यह छोटा-सा परन्तु अत्यन्त उपयोगी ग्रंथ है । इसमें ८ अध्याय और १३१ श्लोक हैं । ८ अध्यायों का विषय इस प्रकार है :
१. काव्य का फल, हेतु और स्वरूपनिरूपण, २. शब्दार्थस्वरूपनिरूपण, ३. शब्दार्थदोषप्रकटन, ४. गुणप्रकाशन, ५. शब्दालंकारनिर्णय, ६. अर्थालंकारप्रकाशन, ७. रीतिस्वरूपनिरूपण, ८. भावाविर्भाव ।
इनके अन्य ग्रन्थ इस प्रकार मालूम होते हैं : १. पार्श्वनाथ चरित (वि० सं० १४१२ ), २. जइदिणचरिया ( यतिदिनचर्या ), ३. कालिकाचार्यकथा | अकबर साहिशृंगार दर्पण :
जैनाचार्य भट्टारक पद्ममेरु के शिष्यरत्न पद्मसुन्दरगणि ने 'अकबरसाहिशृङ्गारदर्पण' नामक अलंकार-ग्रन्थ की रचना की है। ये नागौरी तपागच्छ के भट्टारक यति थे । उनकी परम्परा के हर्मकीर्तिसूरि ने 'धातुतरङ्गिणी' में उनकी योग्यता का परिचय इस प्रकार दिया है : '
मुगल सम्राट अकबर की विद्वत्सभा में पद्मसुन्दर ने किसी महापण्डित को शास्त्रार्थ में परास्त किया था । अकबर ने अपनी विद्वत्सभा में उनको संमान्य विद्वानों में स्थान दिया था । उन्हें रेशमी वस्त्र, पालकी और गाँव भेट में दिया था। वे जोधपुर के राजा मालदेव के सम्मान्य विद्वान् थे ।
'अकबरसाहिशृङ्गारदर्पण' नाम से ही मालूम होता है कि यह ग्रन्थ बादशाह अकबर को लक्षित कर लिखा गया है । ग्रन्थकार ने रुद्र कवि के 'शृङ्गारतिलक' की शैली का अनुसरण करके इसकी रचना की है परन्तु इसका प्रस्तुतीकरण मौलिक है। कई स्थलों में तो यह ग्रन्थ सौन्दर्य और शैली में उससे बढ़कर है । लक्षण और उदाहरण ग्रंथकर्ता के स्वनिर्मित हैं ।
यह ग्रन्थ चार उल्लासों में विभक्त है । कुल मिलाकर इसमें ३४५ छोटे-बड़े
Jain Education International
१ साहेः संसदि पद्मसुन्दरगणिर्जित्वा महापण्डितं चौम-ग्राम- सुखासनाद्यकबर श्री साहितो लब्धवान् । हिन्दू काधिपमालदेवनृपतेर्मान्यो वदान्योऽधिकं श्रीमयोधपुरे सुरेप्सितवचाः पद्माह्वयं पाठकम् ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org