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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास _____ अमृतनंदी का 'अलंकारसंग्रह' नामक एक ग्रन्थ है । उसके प्रथम परिच्छेद में वर्णगणविचार, दूसरे में शब्दार्थनिर्णय, तीसरे में रसनिर्णय, चतुर्थ में नेतृभेद-विचार, पञ्चम में अलंकार-निर्णय, छठे में दोषगुणालंकार, सातवें में सन्ध्यङ्गनिरूपण, आठवें में वृत्ति (त्त ) निरूपण और नवम परिच्छेद में काव्यालंकारनिरूपण है।
यह उनका कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं है। प्राचीन आलंकारिकों के ग्रन्थों को देखकर मन्व भूपति की अनुमति से उन्होंने यह संग्रहात्मक ग्रन्थ बनाया। ग्रन्थकार स्वयं इस बात को स्वीकार करते हुए कहते हैं :
संचित्यैकत्र कथय सौकर्याय सतामिति ।
मया तत्प्रार्थितेनेत्थममृतानन्दयोगिना ।। ८ ॥ मन्व भूपति के पिता, वंश, धर्म तथा काव्यविषयक जिज्ञासा के बारे में भी ग्रन्थकार ने कुछ परिचय दिया है।' मन्व भूपति का समय सन् १२९९ (वि० सं० १३५५) के आसपास माना जाता है । अलंकारमंडन :
मालवा-मांडवगढ़ के सुलतान आलमशाह के मंत्री मंडन ने विविध विषयों पर अनेक ग्रंथ लिखे हैं। उनमें अलंकार-साहित्य विषय का 'अलंकारमंडन' भी है। इसका रचना-समय वि० १५ वीं शताब्दी है । इसमें पाँच परिच्छेद हैं। प्रथम परिच्छेद में काव्य के लक्षण, उसके प्रकार और रीतियों का निरूपण है। द्वितीय परिच्छेद में दोषों का वर्णन है। तीसरे परिच्छेद में गुणों का स्वरूपदर्शन है। चौथे परिच्छेद में रसों का निदर्शन है । पाँचवें परिच्छेद में अलंकारों का विवरण है।
१. वर्णशुद्धि काग्यवृत्ति रसान् भावानन्तरम् ।
नेतृभेदानलकारान् दोषानपि च तद्गुणान् ॥ ६ ॥ नाव्यधर्मान् रूपकोपरूपकाणां भिदा लप्सि)। चाटुप्रबन्धभेदांश्च विकीणांस्तत्र तत्र तु ॥ ७ ॥ उद्दामफलदां गुर्वीमुदधिमेखलाम् (?)। भक्तिभूमिपतिः शास्ति जिनपादाब्जषटपदः ॥ ३ ॥ तस्य पुत्रस्त्यागमहासमुद्रबिरुदाहितः । सोमसूर्यकुलोत्तंसमहितो मन्वभूपतिः ॥ ४ ॥ स कदाचित् सभामध्ये काव्यालापकथान्तरे । मपृच्छदमृतानन्दमादरेण कवीश्वरम् ॥ ५॥
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