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________________ भलङ्कार शृंगारार्णवचन्द्रिका : दिगंबर जैनमुनि विजयकीर्ति के शिष्य विजयवर्णी' ने 'शृंगारार्णवचन्द्रिका' नामक अलंकार-ग्रन्थ की रचना की है। दक्षिण कनाडा जिले में राज करनेवाले जैन राजवंशों में बंगवंशीय (गंगवंशीय ) राजा कामराय बंग जो शक सं० ११८६ (सन् १२६४, वि० सं० १३२०) में सिंहासनारूढ हुआ था, की प्रार्थना से कविवर विजयवर्णी ने इस ग्रंथ की रचना की। वे स्वयं कहते हैं : इत्थं नृपप्रार्थितेन मयाऽलङ्कारसंग्रहः । क्रियते सूरिणा ( ? वर्णिना) नाम्ना शृंगारार्णवचन्द्रिका । इस ग्रंथ में काव्य के गुण, रीति, दोष, अलंकार वगैरह का निरूपण करते हुए जितने भी पद्यमय उदाहरण दिये गये हैं वे सब राजा कामराय बंग के प्रशंसात्मक हैं । अन्त में वर्णीजी कहते हैं : श्रीवीरनरसिंहकामरायबङ्गनरेन्दशरदिन्दुसन्निभकीर्तिप्रकाशके शृङ्गारार्णवचन्द्रिकानाम्नि अलंकारसंग्रहे । कवि ने प्रारंभ में ७ पद्यों में सुप्रसिद्ध कन्नड़ कवि गुणवर्मा का स्मरण किया है । अन्य पद्यों से बंगवाड़ी की तत्काल समृद्धि की स्पष्ट झलक मिलती है तथा कदंब राजवंश के विषय में भी सूचना मिलती है। _ 'शृंगारार्णवचंद्रिका' में दस परिच्छेद इस प्रकार हैं: १. वर्ग-गण-फलनिर्णय, २. काव्यगतशब्दार्थनिर्णय, ३. रसभावनिर्णय, ४. नायकभेदनिर्णय, ५. दशगुणनिर्णय, ६. रीतिनिर्णय, ७. वृत्ति (त्त) निर्णय, ८. शय्याभागनिर्णय, ९. अलंकारनिर्णय, १०. दोष-गुणनिर्णय । यह सरल और स्वतन्त्र ग्रन्थ है । अलकारसंग्रह : __ कन्नड जैनकवि अमृतनन्दी ने 'अलङ्कारसंग्रह' नामक ग्रन्थ की रचना की है। इसे 'अलंकारसार' भी कहते हैं । 'कन्नडकविचरिते' (भा० २, पृ० ३३) से ज्ञात होता है कि अमृतनन्दी १३ वी शताब्दी में हुए थे। 'रसरत्नाकर' नामक कन्नड़ अलंकारग्रन्थ की भूमिका में ए. वेंकटराव तथा एच० टी० शेष आयंगर ने 'अलंकारसंग्रह' के बारे में इस प्रकार परिचय दिया है : १. श्रीमद्विजयकीाख्यगुरुराजपदाम्बुजम् ॥ ५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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