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अलङ्कार
इस कृति में गुर्जरनरेश सिद्धराज जयसिंह के प्रशंसात्मक पद्य दृष्टान्त रूप में दिये गये हैं । यह कृति विक्रम की १३ वीं शताब्दी में रची गयी है ।
आचार्य जयमङ्गलसूरि ने मारवाड़ में स्थित सुंधा की पहाड़ी के संस्कृत शिलालेख की रचना की है। इनकी अपभ्रंश और जूनी गुजराती भाषा की रचनाएँ प्राप्त होती हैं ।
१०९.
अलङ्कार महोदधि :
'अलङ्कारमहोदधि' नामक अलंकारविषयक ग्रन्थ हर्षपुरीय गच्छ के आचार्य नरचन्द्रसूरि के शिष्य नरेन्द्रप्रभसूरि ने महामात्य वस्तुपाल की विनती से वि० सं० १२८० में बनाया |
यह ग्रन्थ आठ तरंगों में विभक्त है । मूल ग्रन्थ के ३०४ पद्य हैं । प्रथम तरंग में काव्य का प्रयोजन और उसके भेदों का वर्णन, दूसरे में शब्दवैचित्र्य का निरूपण, तीसरे में ध्वनि का निर्णय, चतुर्थ में गुणीभूत व्यंग्य का निर्देश, पञ्चम में दोषों की चर्चा, छठे में गुणों का विवेचन, सातवें में शब्दालंकार और आठवें में अर्थालंकार का निरूपण किया है । ग्रन्थ विद्यार्थियों के लिये उपयोगी है।
अलङ्कारमहोदधि-वृत्ति :
'अलङ्कारमहोदधि' ग्रन्थ पर आचार्य नरेन्द्रप्रभसूरि ने स्वोपज्ञ वृत्ति की रचना वि० सं० १२८२ में की है । यह वृत्ति ४५०० श्लोक - प्रमाण है । इसमें प्राचीन महाकवियों के ९८२ उदाहरणरूप विविध पद्य नाटक, काव्य आदि ग्रन्थों उद्धृत किये गये हैं ।
से
अहमदाबाद के डेला भण्डार की ३९ पत्रों की 'अर्थालङ्कार - वर्णन' नामक कृति कोई स्वतंत्र ग्रन्थ नहीं है अपितु इस 'अलंकार महोदधि' ग्रन्थ के आठवें तरंग और इसकी स्वोपज्ञ टीका की ही नकल है ।
१. इस ग्रन्थ की तालपत्रीय प्रति खंभात के शान्तिनाथ भण्डार में है । इसकी प्रेस कॉपी मुनिराज श्री पुण्यविजयजी के पास है ।
२. यह 'अलंकारमहोदधि' ग्रन्थ गायकवाद ओरियण्टल सिरीज में छफ
गया है ।
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