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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास आचार्य नरेन्द्रप्रभसूरि की अन्य रचनाएँ इस प्रकार हैं :-१. काकुत्स्थकेलि', २. विवेककलिका, ३. विवेकपादप', ४. वस्तुपालप्रशस्तिकाव्य-श्लोक ३७, ५. वस्तुपालप्रशस्तिकाव्य-श्लोक १०४, ६. गिरनार के मन्दिर का शिलालेख। काव्यशिक्षा:
आचार्य रविप्रभसूरि के शिष्य आचार्य विनयचन्द्रसूरि ने 'काव्यशिक्षा" नामक ग्रन्थ की रचना की है। इसमें उन्होंने रचना-समय नहीं दिया है परन्तु आचार्य उदयसिंहसूरिरचित 'धर्मविधि-वृत्ति' का संशोधन इन्हीं आचार्य विनयचन्द्रसूरि ने वि० सं० १२८६ में किया था, ऐसा उल्लेख प्राप्त होने से यह ग्रन्थ भी उस समय के आसपास में रचा गया होगा, ऐसा मान सकते हैं।
इस ग्रन्थ में छः परिच्छेद हैं : १. शिक्षा, २. क्रियानिर्णय, ३. लोककौशल्य, ४. बीजव्यावर्णन, ५. अनेकार्थशब्दसंग्रह और ६. रसभावनिरूपण । इसमें उदाहरण के लिये अनेक ग्रन्थों के उल्लेख और संदर्भ लिये हैं। आचार्य हेमचन्द्रसूरिरचित 'काव्यानुशासन' की विवेक-टीका में से अनेक पद्य
और बाण के 'हर्षचरित' में से अनेक गद्यसन्दर्भ लिये हैं । कवि बनने के लिये आवश्यक जो सौ गुण रविप्रभसूरि ने बताये हैं उनका विस्तार से
१. 'पुरातत्व' त्रैमासिक : पुस्तक २, पृ. २४६ में दी हुई 'वृहट्टिप्पनिका' में
काकुत्स्थकेलि के १५०० श्लोक-प्रमाण नाटक होने की सूचना है। आचार्य राजशेखरकृत 'न्यायकन्दलीपञ्जिका' में दो ग्रन्थों का उल्लेख इस प्रकार है:
"तस्य गुरोः प्रियशिष्यः प्रभुनरेन्द्रप्रभः प्रभवादयः । । योऽलङ्कारमहोदधिमकरोत् काकुत्स्थकेलिं च ॥"
–पिटर्सन रिपोर्ट ३, २७५. २. विवेककलिका और विवेकपादप-ये दोनों सूक्ति-संग्रह हैं । ३. 'भलंकारमहोदधि' ग्रन्थ में ये दोनों प्रशस्तियाँ परिशिष्टरूप में छप
गई हैं। ४. यह लेख 'प्राचीन जैन लेखसंग्रह' में छप गया है। ५. यह लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद से
प्रकाशित है।
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