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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ८. वाग्भटालङ्कार-वृत्ति
आचार्य वर्धमानसूरि ने 'वाग्भटालंकार' पर वृत्ति की रचना की है, ऐसा जैन ग्रन्थावली में उल्लेख है। ९. वाग्भटालङ्कार-वृत्ति
मुनि कुमुदचन्द्र ने 'वाग्भटालंकार' पर वृत्ति की रचना की है। १०. वाग्भटालङ्कार-वृत्ति:
मुनि साधुकीर्ति ने 'वाग्भटालंकार' पर वि० सं० १६२०-२१ में वृत्ति की रचना की है। ११. वाग्भटालङ्कार-वृत्ति:
'वाग्भटालंकार' पर किसी अज्ञात नामा मुनि ने वृत्ति की रचना की है। १२. वाग्भटालङ्कार-वृत्ति:
दिगम्बर विद्वान् वादिराज ने 'वाग्भटालंकार' पर टीका की रचना वि० सं० १७२९ की दीपमालिका के दिन गुरुवार को चित्रा नक्षत्र में वृश्चिक लग्न के समय पूर्ण की।
वादिराज खंडेलवालवंशीय श्रेष्ठी पोमराज (पद्मराज) के पुत्र थे। वे खुद को अपने समय के धनंजय, आशाधर और वाग्भट के पदधारक याने उनके जैसा विद्वान् बताते हैं। वे तक्षकनगरी के राजा भीम के पुत्र राजसिंह राजा के मन्त्री थे। १३-५. वाग्भटालङ्कार-वृत्ति :
प्रमोदमाणिक्यगणि ने भी 'वाग्भटालंकार' पर वृत्ति की रचना की है।
जैनेतर विद्वानों में अनन्तभद के पुत्र गणेश तथा कृष्णवर्मा ने 'वाग्भटालंकार' पर टीकाएँ लिखी हैं। कविशिक्षा:
वादी देवसूरि के शिष्य आचार्य जयमङ्गलसूरि ने 'कविशिक्षा' नामक ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रन्थ ३०० श्लोक-परिमाण गद्य में लिखा हुआ है। इसमें अलंकार के विषय में अति संक्षेप में निर्देश करते हुए अनेक तथ्यपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
१. देखिए-जैन साहित्यको संक्षिप्त इतिहास, ५८१-२.
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