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कोश
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आचार्य हर्षकीर्तिसूरि व्याकरण और वैद्यक में निपुण थे। उनके निम्नोक्त ग्रन्थ हैं :
१. योगचिन्तामणि, २. वैद्यकसारोद्धार, ३. धातुपाठ, ४. सेट-अनिटकारिका, ५. कल्याणमंदिरस्तोत्र-टीका, ६. बृहच्छांतिस्तोत्र-टीका, ७. सिन्दूरप्रकर, ८. श्रुतबोध-टीका आदि ।
शब्दरत्नाकर
खरतरगच्छीय साधुसुन्दरगणि ने वि० सं० १६८० में 'शब्दरत्नाकर' नामक कोशग्रंथ की रचना की है। साधुसुंदर साधुकीर्ति के शिष्य थे।
शब्दरत्नाकर पद्यात्मक कृति है। इसमें छः कांड-१. अर्हत्, २. देव, ३. मानव, ४. तिर्यक् , ५. नारक और ६. सामान्य कांड-हैं।'
इस ग्रंथ के कर्ता ने 'उक्तिरत्नाकर' और क्रियाकलापवृत्तियुक्त 'धातुरत्नाकर' की. रचना भी की है। इनका जैसलमेर के किले में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ-तीर्थकर की स्तुतिरूप स्तोत्र भी प्राप्त होता है । अव्ययकाक्षरनाममाला :
मुनि सुधाकलशगणि ने 'अव्ययकाक्षरनाममाला' नामक ग्रंथ १४ वी शताब्दी में रचा है । इसकी १ पत्र की १७ वीं शती में लिखी गई प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद में विद्यमान है। शेषनाममाला
खतरगच्छीय मुनि श्री साधुकीर्ति ने 'शेषनाममाला' या 'शेषसंग्रहनाममाला' नामक कोशग्रंथ की रचना की है। इन्हीं के शिष्यरत्न साधुसुन्दरगणि ने वि०सं० १६८० में 'क्रियाकलाप' नामक वृत्तियुक्त 'धातुरत्नाकर', 'शब्दरत्नाकर' और 'उक्तिरत्नाकर' नामक ग्रंथों की रचना की है। ____ मुनि साधुकीर्ति ने यवनपति बादशाह अकबर की सभा में अन्यान्य धर्मपंथों के पंडितों के साथ वाद-विवाद में खूब ख्याति प्राप्त की थी। इसलिये 'बादशाह
१. यह ग्रंथ यशोविजय जैन ग्रंथमाला, भावनगर से वी० सं० २४३९ में प्रका.
शित हुभा है।
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