________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
उनके लिये आगरा में एक धर्मस्थानक बनवा दिया था । उपाध्याय पद्मसुन्दर ज्योतिष, वैद्यक, साहित्य और तर्क आदि शास्त्रों के धुरंधर विद्वान् थे । उनके पास आगरा में विशाल शास्त्रसंग्रह था । उनका स्वर्गवास होने के बाद सम्राट् अकबर ने वह शास्त्र संग्रह आचार्य हीरविजयसूरि को समर्पित किया था । शब्दभेद नाममाला :
९०
महेश्वर नामक विद्वान् ने 'शब्दभेदनाममाला' की रचना की है। इसमें संभवतः थोड़े अन्तर वाले शब्द जैसे--अम्गा, आप्गा; अगार, आगार, अराति, आराति आदि एकार्थक शब्दों का संग्रह होगा ।
शब्दभेदनाममाला-वृत्ति :
'शब्दभेदूनाममाला' पर खरतरगच्छीय भानुमेरु के शिष्य ज्ञानविमलसूरि ने वि. सं. १६५४ में ३८०० श्लोक प्रमाण वृत्तिग्रन्थ की रचना की है । नामसंग्रह :
उषाध्याय भानुचन्द्रगणि ने 'नामसंग्रह' नामक कोश की रचना की है। इसे 'नाममाला-संग्रह ' अथवा 'विविक्तनाम संग्रह' भी कहते हैं । इस 'नाममाला ' को कई विद्वान् 'भानुचन्द्र- नाममाला' के नाम से भी पहिचानते हैं । इस कोश में 'अभिधान- चिन्तामणि' के अनुसार ही छः कांड हैं और कांडों के शीर्षक भी उसी प्रकार हैं । उपाध्याय भानुचन्द्र मुनि सूरचन्द्र के शिष्य थे । उनको वि. सं. १६४८ में लाहौर में उपाध्याय की पदवी दी गई। वे सम्राट अकबर के सामने स्वरचित 'सूर्यसहस्रनाम' प्रत्येक रविवार को सुनाया करते थे । उनके रचे हुए अन्य ग्रंथ इस प्रकार हैं :
१. रत्नपालकथानक ( वि. सं. १६६२), २. सूर्यसहस्रनाम, ३. कादम्बरीवृत्ति, ४. वसन्तराजशाकुन-वृत्ति, ५. विवेकविलास वृत्ति, ६. सारस्वतव्याकरण-वृत्ति ।
शारदीयनाममाला :
नागपुरीय तपागच्छ के आचार्य चंद्रकीर्तिसूरि के शिष्य हर्षकीर्तिसूरि ने 'शारदीयनाममाला' या 'शारदीयाभिधानमाला' नामक कोश-ग्रन्थ की रचना १७ वीं शताब्दी में की है। इसमें करीब ३०० श्लोक हैं ।
१. देखिए – जैन ग्रन्थावली, पृ. ३११.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org