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________________ कोश 'रत्नप्रभा' नाम से टीका की रचना की है। इसमें कहीं-कहीं संस्कृत शब्दों के गुजराती अर्थ भी दिये हैं। अभिधानचिन्तामणि-बीजक : 'अभिधानचिन्तामणिनाममाला-बीजक' नाम से तीन मुनियों की रचनाएँ उपलब्ध होती हैं। बीजकों में कोश की विस्तृत विषय-सूची दी गई है। अभिधानचिन्तामणिनाममाला-प्रतीकावली: - इस नाम की एक हस्तलिखित प्रति भांडारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना में है। इसके कर्ता का नाम इसमें नहीं है। अनेकार्थसंग्रह : ___आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने 'अनेकार्थ-संग्रह' नामक कोशग्रन्थ की रचना विक्रमीय १३ वी शताब्दी में की है। इस कोश में एक शब्द के अनेक अर्थ दिये गये हैं। इस ग्रंथ में सात कांड हैं। १. एकस्वरकांड में १६, २. द्विस्वरकांड में ५९१, ३. त्रिस्वरकांड में ७६६, ४. चतुःस्वरकांड में ३४३, ५. पञ्चस्वरकांड में ४८, ६. घटस्वरकांड में ५, ७. अव्ययकांड में ६०-इस प्रकार कुल मिलाकर १८२९+ ६० पद्य हैं। इसमें आरंभ में अकारादि क्रम से और अंत में क आदि के क्रम से योजना की गई है। इस कोश में भी 'अभिधानचिंतामणि' के सदृश देश्य शब्द हैं। यह ग्रन्थ 'अभिधानचिंतामणि' के बाद ही रचा गया है, ऐसा इसके आद्य पद्य से ज्ञात होता है। अनेकार्थसंग्रह-टीका : 'अनेकार्थसंग्रह' पर 'अनेकार्थ-कैरवाकर-कौमुदी' नामक टीका आचार्य हेमचन्द्रसूरि के ही शिष्य आचार्य महेन्द्रसूरि ने रची है, ऐसा टीका के १. ( क ) तपागच्छीय आचार्य हीरविजयसूरि के शिष्य शुभविजयजी ने वि० सं० १६६१ में रचा। (ख) श्री देवविमलगणि ने रचा । (ग) किसी अज्ञात नामा मुनि ने रचना की है। २. यह कोश चौखंबा संस्कृतसिरीज, बनारस से प्रकाशित हुआ है। इससे पूर्व 'अभिधान संग्रह' में शक-संवत् १८१८ में महावीर जैन सभा, खंभात से तथा विद्याकर मिश्र द्वारा कलकत्ता से प्रकाशित हुभा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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