________________
८४
जेन साहित्य का वृहद् इतिहास ___ इस स्वोपज्ञ वृत्ति में ५६ ग्रन्थकारों और ३१ ग्रन्थों का उल्लेख है। जहाँ पूर्व के कोशकारों से उनका मतभेद है वहीं आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने अन्य ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के नाम उद्धृत करके अपने मतभेद का स्पष्टीकरण किया है। अभिधानचिंतामणि-टीका: ___मुनि कुशलसागर ने 'अभिधानचिन्तामणि' कोश पर टीका की रचना की है। अभिधानचिन्तामणि-सारोद्धार : ____ खरतरगच्छीय ज्ञानविमल के शिष्य वल्लभगणि ने वि० सं० १६६७ में 'अभिधानचिन्तामणि' पर 'सारोद्धार' नामक टीका की रचना की है। इसको शायद 'दुर्गपदप्रबोध' नाम भी दिया गया हो ऐसा मालूम होता है। अभिधानचिन्तामणि-टीका : __ अभिधानचिन्तामणि पर मुनि साधुरत्न ने भी एक टीका रची है । अभिधानचिंतामणि-व्युत्पत्तिरत्नाकर :
अंचलगच्छीय विनयचंद्र वाचक के शिष्य मुनि देवसागर ने वि० सं० १६८६ में 'हैमीनाममाला' अर्थात् 'अभिधानचिन्तामणि' कोश पर 'व्युत्पत्तिरत्नाकर' नामक वृत्ति-ग्रंथ की रचना की है, जिसकी १२ श्लोकों की अन्तिम प्रशस्ति प्रकाशित है।'
मुनि देवसागर ने तथा आचार्य कल्याणसागरसूरि ने शत्रुजय पर सं० १६७६ में तथा सं० १६८३ में प्रतिष्ठित किये गये श्री श्रेयांसजिनप्रासाद और श्री चन्द्रप्रभजिनप्रासाद की प्रशस्तियाँ रची हैं। इनकी हस्तलिखित प्रतियाँ जैसलमेर के ज्ञान-भंडार में हैं।। अभिधानचिन्तामणि-अवचूरि:
किसी अज्ञात नामा जैन मुनि ने अभिधान चिन्तामणि कोश पर ४५०० श्लोकप्रमाण 'अवचूरि' की रचना की है, जिसकी हस्तलिखित प्रति पाटन के भंडार में है। इसका उल्लेख 'जैन ग्रन्थावली' पृ० ३१० में है । अभिधानचिन्तामणि-रत्नप्रभा :
पं० वासुदेवराव जनार्दन कशेलीकर ने अभिधानचिन्तामणि कोश पर १. देखिए–'जैसलमेर-जैन-भांडागारीय-ग्रन्थानां सूचीपत्रम्' (बड़ौदा, सन्
५९२३ ) पृ० ६१. २. एपिग्राफिभा इण्डिका, २. ६४, ६६,.६८, ७१.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org