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काश
हेमचन्द्र ने शब्दों के तीन विभाग बताये हैं : १. रूढ़, २. यौगिक और ३. मिश्र ! रूढ़ की व्युत्पत्ति नहीं होती। योग अर्थात् गुग, क्रिया और सम्बन्ध से जा सिद्ध हो सके । जो रूढ़ भी हो और यौगिक भी हो उसे मिश्र कहते हैं।
'अमर-कोश' से यह कोश शब्दसंख्या में डेढ़ा है। 'अमर-कोश' में शब्दों के साथ लिंग का निर्देश किया गया है परन्तु आचार्य हेमचन्द्र ने अपने कोश में लिंग का उल्लेख न करके स्वतन्त्र 'लिंगानुशासन' की रचना की है।
हेमचन्द्रसूरि ने इस कोश में मात्र पर्यायवाची शब्दों का ही संकलन नहीं किया, अपितु इसमें भाषासम्बन्धी महत्त्वपूर्ण सामग्री भी संकलित है। इसमें अधिक से अधिक शब्द दिये हैं और नवीन तथा प्राचीन शब्दों का समन्वय भी किया है। ____ आचार्य ने समान शब्दयोग से अनेक पर्यायवाची शब्द बनाने का विधान भी किया है, परन्तु इस विधान के अनुसार उन्हीं शब्दों को ग्रहण किया है जो कवि-संप्रदाय द्वारा प्रचलित और प्रयुक्त हों। कवियों द्वारा अप्रयुक्त और अमान्य शब्दों के ग्रहण से अपनी कृति को बचा लिया है ।
_ भाषा की दृष्टि से यह कृति बहुमूल्य है। इसमें प्राकृत, अपभ्रंश और देशी भाषाओं के शब्दों का पूर्णतः प्रभाव दिखाई देता है । इस दृष्टि से आचार्य ने कई नवीन शब्दों को अपना कर अपनी कृति को समृद्ध बनाया है।
ये विशेषताएँ अन्य कोशों में देखने में नहीं आती।
अभिधानचिन्तामणि-वृत्ति: __ 'अभिधानचिन्तामणि' कोश पर आचार्य हेमचन्द्र ने स्वोपज्ञ वृत्ति की रचना की है, जिसको 'तत्त्वाभिधायिनी' कहा गया है। 'शेप' उल्लेख से अतिरिक्त शब्दों के संग्राहक श्लोक इस प्रकार हैं : १ कांड में १, २ कांड में ८९, ३ कांड में ६३, ४ कांड में ४१, ५ कांड में २, और ६ कांड में ८इस प्रकार कुल मिलाकर २०४ श्लोकों का परिशिष्ट-पत्र है। मूल १५४१ श्लोकों में २०४ मिलाने से पूरी संख्या १७४५ होती है। वृत्ति के साथ इस ग्रन्थ का श्लोक-परिमाण करीब साढ़े आठ हजार होता है।
व्याडि का कोई शब्दकोश आचार्य हेमचन्द्र के सामने था, जिसमें से उन्होंने कई प्रमाण उद्धृत किये हैं।
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