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व्याकरण
चिन्तामणि-व्याकरणवृत्ति:
'चिन्तामणिव्याकरण' पर आचार्य शुभचंद्र ने स्वोपश वृत्ति की रचना की है। ___इस व्याकरण-ग्रन्थ के अलावा इन्होंने अन्य अनेक ग्रंथों की भी रचना की है। अर्धमागधी-व्याकरण:
'अर्धमागधी व्याकरण की सूत्रबद्ध रचना वि० सं० १९९५ के आसपास शतावधानी मुनि रत्नचन्द्रजी ( स्थानकवासी) ने की है। मुनि श्री ने इस पर स्वोपज्ञ वृत्ति भी बनाई है। प्राकृत-पाठमाला:
उपर्युक्त मुनि रत्नचन्द्रजी ने 'प्राकृत-पाठमाला' नामक ग्रंथ की रचना प्राकृत भाषा के विद्यार्थियों के लिये की है। यह कृति भी छप चुकी है। कर्णाटक-शब्दानुशासन:
दिगम्बर जैन मुनि अकलंक ने 'कर्णाटकशब्दानुशासन' नामक कन्नड़ भाषा के व्याकरण की रचना शक सं० १५२६ (वि० सं० १६६१) में संस्कृत में की है । इस व्याकरण में ५९२ सूत्र हैं।'
नागवर्म ने जिस 'कर्णाटकभूषण' व्याकरण की रचना की है उससे यह व्याकरण बड़ा है और 'शब्दमणिदर्पण' नामक व्याकरण से इसमें अधिक विषय हैं । इसलिए यह सर्वोत्तम व्याकरण माना जाता है ।
मुनि अकलंक ने इसमें अपने गुरु का परिचय दिया है। इसमें इन्होंने चारुकीर्ति के लिये अनेक विशेषणों का प्रयोग किया है। 'कर्णाटक-शब्दानुशासन' पर किसी ने 'भाषामञ्जरी' नामक वृत्ति लिखी है तथा 'मञ्जरीमकरन्द' नामक विवरण भी लिखा है।
१. विशेष परिचय के लिए देखिए-डा० ए० एन० उपाध्ये का लेख :
A. B. O. R. I., Vol. XIII, pp. 46-52. २. यह ग्रन्थ मेहरचन्द लछमणदास ने लाहोर से सन् १९३८ में प्रकाशित
किया है। ३. 'मनेकान्त' वर्ष १, किरण ६-७, पृ० ३३५.
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