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________________ व्याकरण सुबोधिनी : 'सिद्धान्तचन्द्रिका' पर खरतरगच्छीय रूपचन्द्रजी ने १८ वीं शती में 'सुबोधिनी - टीका' ( ३४९४ श्लोकात्मक ) की रचना की है, जिसकी प्रति बीकानेर के एक भंडार में है । वृत्ति : 'सिद्धान्तचन्द्रिका' व्याकरण पर खरतरगच्छीय मुनि विजयवर्धन के शिष्य ज्ञानतिलक ने १८ वीं शताब्दी में वृत्ति की रचना की है, जिसकी प्रतियाँ बीकानेर के महिमाभक्ति भंडार और अबीरजी के भंडार में हैं । ६१ अनिटकारिका - अवचूरि : श्री क्षमामाणिक्य मुनि ने 'अनिटकारिका' पर १८ वीं शताब्दी में 'अवचूरि' की रचना की है। इसकी हस्तलिखित प्रति बीकानेर के श्रीपूज्यजी के भंडार में है । अनिट् कारिका - स्वोपज्ञवृत्ति : नागपुरीय तपागच्छ के हर्षकीर्तिसूरि ने १७ वीं शताब्दी में 'अनिटकारिका' नामक ग्रंथ की रचना वि० सं० १६६२ में की है और उस पर वृत्ति की रचना सं० १६६९ में की है । उसकी प्रति बीकानेर के दानसागर भंडार में है । भूधातु-वृत्ति : खरतरगच्छीय क्षमाकल्याण मुनि ने वि० सं० १८२८ में 'भूधातु वृत्ति' की रचना की है । उसकी हस्तलिखित प्रति राजनगर के महिमाभक्ति भंडार में है । मुग्धावबोध-औक्तिक : तपागच्छीय आचार्य देवसुन्दरसूरि के शिष्य कुलमण्डनसूरि ने 'मुग्धावबोध-औक्तिक' नामक कृति की रचना १५ वीं शताब्दी में की है । कुलमण्डनसूरि का जन्म वि० सं० १४०९ में और स्वर्गवास सं० १४५५ में हुआ था । उसी के दरमियान इस ग्रंथ की रचना हुई है । गुजराती भाषा द्वारा संस्कृत का शिक्षण देने का प्रयास जिसमें हो वैसी रचनाएँ ' औक्तिक' नाम से कही जाती हैं । इस औक्तिक में ६ प्रकरण केवल संस्कृत में हैं । प्रथम, द्वितीय, सातवें और आठवें प्रकरणों में सूत्र और कारिकाएँ संस्कृत में हैं और विवेचन प्राकृत याने जूनी गुजराती में । तीसरा, चौथा, पाँचवां, छठा और नवां प्रकरण जूनी गुजराती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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