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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास न्यायरत्नावली: 'सारस्वत-व्याकरण' पर खरतरगच्छीय आचार्य जिनचन्द्रसूरि के शिष्य दयारत्न मुनि ने इसमें प्रयुक्त न्यायों पर 'न्यायरत्नावली' नामक विवरण वि. सं. १६२६ में लिखा है जिसकी वि० सं० १७३७ में लिखित प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में है। पंचसंधिटीका: 'सारस्वत-व्याकः ।' पर सोमशील नामक मुनि ने पंचसंधि-टीका' की रचना की है। समय ज्ञात नहीं है। इसकी प्रति पाटन के भंडार में है। टीका: 'सारस्वत-व्याकरण' पर सत्यप्रबोध मुनि ने एक टीका ग्रन्य की रचना की है। इसका समय ज्ञात नहीं है। इसकी प्रतियां पाटन और लीबड़ी के भंडारों में हैं। शब्दप्रक्रियासाधनी-सरलाभाषाटीका : 'सारस्वतव्याकरण' पर आचार्य विश्वराजेन्द्रसूरि ने २० वीं शताब्दी में 'शब्दप्रक्रियासाधनीसरलाभाषाटीका' नामक टीकाग्रन्थ की रचना की है, जिसका उल्लेख उनके चरितलेखों में प्राप्त होता है । सिद्धान्तचन्द्रिका व्याकरण : 'सिद्धान्तचन्द्रिका-व्याकरण' के सूल रचयिता रामचन्द्राश्रम हैं। वे कब हुए, यह अज्ञात है । जैनेतरकृत व्याकरण होने पर भी कई जैन विद्वानों ने इस पर वृत्तियाँ रची हैं। सिद्धान्तचन्द्रिका-टीका ___ 'सिद्धान्तचन्द्रिका' व्याकरण पर आचार्य जिनरत्नमरि ने टीका की रचना की है । यह टीका छप चुकी है। वृत्ति : 'सिद्धान्तचन्द्रिका' व्याकरण पर खरतरगच्छीय कीर्तिसूरि शाखा के सदानन्द मुनि ने वि० सं० १७९८ में वृत्ति की रचना की है जो छप चुकी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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