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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
आरे के ७५ वर्ष ८ मास १५ दिन शेष रहनेपर पुष्पोत्तर विमान से आषाढ़ शुक्ला षष्ठी के दिन बहत्तर वर्ष की आयु से युक्त तथा तीन प्रकार के ज्ञान के धारक भगवान् महावीर गर्भ में अवतीर्ण हुए। महावीर का कुमार काल ३० वर्ष, छद्मस्थ काल १२ वर्ष और केवलिकाल ३० वर्ष है। इस प्रकार उनकी आयु ७२ वर्ष होती है। इसे ७५ वर्ष में से कम करने पर वर्धमान महावीर के मुक्त होने पर जो शेष चतुर्थ आरा रहता है उसका प्रमाण होता है। इसमें ६६ दिन कम केवलिकाल जोड़ने पर चतुर्थ आरे के ३३ वर्ष ६ मास ९ दिन शेष रहते हैं । केवलिकाल में ६६ दिन इसलिए कम किये जाते हैं कि केवलज्ञान उत्पन्न होने पर भी गणधर का अभाव होने के कारण उतने समय तक तीर्थ की उत्पत्ति नहीं हुई।
__ अन्य कुछ आचार्य वर्धमान जिनेन्द्र की आय ७१ वर्ष ३ मास २५ दिन मानते हैं। उनके मत से गर्भस्थ, कुमार, छद्मस्थ और केवलज्ञान के कालों की प्ररूपणा इस प्रकार है :
भगवान् महावीर आषाढ़ शुक्ला षष्ठी के दिन कुण्डलपुर नगर के अधिपति नाथवंशी सिद्धार्थ नरेन्द्र की त्रिशला देवी के गर्भ में आकर वहाँ ९ मास ८ दिन रहकर चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में गर्भ से बाहर आये । उन्होंने २८ वर्ष ७ मास १२ दिन श्रेष्ठ मानुषिक सुख का सेवन करके आभिनिबोधिक ज्ञान से प्रबुद्ध होते हुए षष्ठोपवास के साथ मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी के दिन गृहत्याग किया। त्रिरत्नशुद्ध महावीर १२ वर्ष ५ मास १५ दिन छद्मस्थ अवस्था में रहकर ऋजुकूला नदी के तीर पर जम्भिका ग्राम के बाहर शिलापट्ट पर षष्ठोपवास के साथ आतापन लेते हुए अपराह्न काल में पादपरिमित छाया होने पर वैशाख शुक्ला दशमी के दिन क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ होकर एवं घातिकर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान को सम्प्राप्त हुए । इसके बाद २९ वर्ष ५ मास २० दिन चार प्रकार के अनगारों व बारह गणों के साथ विहार कर अन्त में वे पावा नगर में कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के दिन स्वाति नक्षत्र में रात्रि के समय शेष कर्मों को नष्ट कर मुक्त हुए।
भगवान् महावीर के निर्वाण-दिवस से ३ वर्ष ८ मास १५ दिन व्यतीत होने पर श्रावण मास की प्रतिपदा के दिन दुष्षमा नामक आरा अवतीर्ण हुआ। इस
१. वही, पृ० ११९-१२१.
२. वही, पृ० १२१-१२५.
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