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कर्मप्राभूत
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उपशमश्रेणी के चार गुणस्थानों में से प्रत्येक में द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा से कितने जीव हैं ? प्रवेश की अपेक्षा से एक, दो या तीन तथा उत्कृष्टतया चौवन हैं । काल की अपेक्षा से संख्येय हैं । "
क्षपकश्रेणी के चार गुणस्थानों में से प्रत्येक में तथा अयोगिकेवली गुणस्थान में द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा से कितने जीव हैं ? प्रवेश की अपेक्षा से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्टतया एक सौ आठ हैं । काल की अपेक्षा से संख्येय हैं । २ सयोगिकेवली गुणस्थान में प्रवेश की अपेक्षा से एक, दो या तीन तथा उत्कृष्टतया एक सौ आठ जीव होते हैं । काल की अपेक्षा से यह संख्या लक्षपृथक्त्व होती है । ३
द्रव्यप्रमाणानुगमविषयक यह कथन ओघ अर्थात् सामान्य की अपेक्षा से है । आदेश अर्थात् विशेष की अपेक्षा से एतद्विषयक कथन इस प्रकार है :
गति की अपेक्षा से नरकगतिगत नारकियों में मिथ्यादृष्टि जीव असंख्येय होते हैं । ये असंख्येयासंख्येय अवसर्पिणियों व उत्सर्पिणियों द्वारा अपहृत हो जाते हैं । ४ सासादन सम्यग्दृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक का कथन सामान्य प्ररूपणा के समान समझना चाहिए ।"
तिर्यञ्चगतिगत तिर्यञ्चों में मिथ्यादृष्टि से लेकर संयतासंयत तक का सम्पूर्ण - कथन सामान्यवत् है । " पंचेन्द्रियतिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा से असंख्येया संख्येय अवसर्पिणियों व उत्सर्पिणियों द्वारा अपहृत होते हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि से लेकर संयतासंयत तक का कथन सामान्य तिर्यञ्चों के समान है । " योनिवाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा से असंख्येय हैं, आदि ।
मनुष्यगतिगत मनुष्यों में मिथ्यादृष्टि असंख्येय हैं तथा असंख्येया संख्येय अवसर्पिणियों व उत्सर्पिणियों द्वारा अपहृत होते हैं । ये जगश्रेणी के असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इस श्रेणी का आयाम असंख्येय कोटि योजन है । सासादनसम्यग्दृष्टि से लेकर संयतासंयत तक प्रत्येक गुणस्थान में संख्येय मनुष्य होते हैं । प्रमत्तसंयत से लेकर अयोगिकेवली तक का कथन सामान्य प्ररूपणा के समान है ।" स्त्रियों में मिथ्यादृष्टि कोटाकोटाकोटि के ऊपर यथा कोटाकोटाकोटाकोटि के
१. सू० ९-१०.
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७. सू० २५-२६. १०. सू० ४० - ४४.
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