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________________ ३८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास देवियाँ तथा सौधर्म एवं ईशान कल्पवासिनी देवियाँ असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टि नहीं होते, शेष दो प्रकार के सम्यग्दर्शन से युक्त होते हैं ।" संज्ञा की अपेक्षा से जीव संज्ञी एवं असंज्ञी होते हैं । संज्ञी मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक होते हैं । असंज्ञी एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक होते हैं । आहार की अपेक्षा से जीव आहारक एवं अनाहारक होते हैं । आहारक एकेन्द्रिय से लेकर सयोगिकेवली तक होते हैं । विग्रहगतिसमापन्न जीव, समुद्घातगत केवली, अयोगिकेवली तथा सिद्ध अनाहारक होते हैं । 3 २. द्रव्यप्रमाणानुगम - सत्प्ररूपणा की तरह द्रव्यप्रमाणानुगम में भी दो प्रकार का कथन होता है : ओघ अर्थात् सामान्य की अपेक्षा से और आदेश अर्थात् विशेष की अपेक्षा से दव्वपमाणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य ॥ १ ॥ ओघ की अपेक्षा से द्रव्यप्रमाण से प्रथम गुणस्थानवर्ती अर्थात् मिथ्यादृष्टि जीव कितने हैं ? अनन्त हैं : ओघेण मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया, अनंता ।। २ ।। कालप्रमाण से मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त अवसर्पिणियों व उत्सर्पिणियों द्वारा अपहृत नहीं होते : अणंताणंताहि ओसप्पिणि उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण ॥ ३ ॥ क्षेत्रप्रमाण से मिथ्यादृष्टि जीवराशि अनन्तानन्त लोकप्रमाण है : खेत्ते अनंताणंता लोगा ॥ ४ ॥ उपर्युक्त तीनों प्रमाणों का ज्ञान ही भावप्रमाण है : तिण्हं पि अधिगमो भावपमाणं ॥ ५ ॥ सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक ( प्रत्येक गुणस्थान में ) द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा से कितने जीव हैं ? पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । * प्रमत्तसंयत गुणस्थान में द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा से कितने जीव हैं ? कोटिपृथक्त्व प्रमाण हैं ।" अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा से कितने जीव हैं ? संख्येय हैं । १. सू० १६८ - १६९. ४. सू० ६ ( पुस्तक ३ ), Jain Education International २. सू० १७२ - १७४. ५. सू० ७. For Private & Personal Use Only ३. सू० १७५ - १७७. ६. सू० ८. www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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