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१. दीपालिकाकल्प :
इस पद्यात्मक कृति' की रचना विनयचन्द्रसूरि ने २७८ पद्यों में की है । ये रत्नसिंहसूरि के शिष्य थे । इन्होंने वि० सं० १३२५ में कल्पनिरुक्त की रचना की है । प्रस्तुत कृति का प्रारम्भ महावीरस्वामी और श्रुतदेवता के स्मरण के साथ किया गया है । इसमें मौर्यवंश के चन्द्रगुप्त के पुत्र बिन्दुसार, उसके पुत्र अशोकश्री, अशोक के पुत्र कुणाल ( अवन्तिनाथ ) और कुणाल के पुत्र सम्प्रतिइस प्रकार सम्प्रति के पूर्वजों के विषय में उल्लेख है । आर्य सुहस्तिसूरि जीवस्वामिप्रतिमा के वन्दन के लिए उज्जयिनी में आये थे । एक बार रथयात्रा में इन्हें देखकर सम्प्रति को जातिस्मरणज्ञान हुआ । उसने सूरि से राज्य ग्रहण करने की प्रार्थना की। उन्होंने उसे इन्कार करके धर्माराधन करने को कहा । तब सम्प्रति ने दीपालिका पर्व की उत्पत्ति कैसे हुई, इसके बारे में पूछा । इस पर सूरि ने महावीरस्वामी के च्यवन से लेकर निर्वाण तक का वृत्तान्त कहा। इसके अन्त में पुण्यपाल अपने देखे हुए आठ स्वप्नों का फल पूछता है और महावीर स्वामी ने उसका जो फल- कथन किया उसका निर्देश है । इसके अनन्तर गौतमस्वामी के भावी जीवन के विषय में पूछने पर उसके उत्तर के रूप में कई बातें कहकर कल्की राजा का चरित्र और उसके पुत्र दत्त की कथा का उल्लेख है । इसके बाद पाँचवें आरे के अन्तिम भाग का तथा छठे आरे आदि का वर्णन किया है । भावउद्योतरूप महावीरस्वामी का निर्वाण होने पर अठारह राजाओं ने द्रव्यउद्योत किया और वह दीपालिका पर्व के नाम से प्रसिद्ध हुआ, ऐसा यहाँ कहा गया है । नन्दिवर्धन का शोक दूर करने के लिए उनकी बहन सुदर्शना ने उन्हें द्वितीया के दिन भोजन कराया था, इसपर से भ्रातृद्वितीया ( भाईदूज ) का
१. यह छाणी से 'लब्धिसूरीश्वर जैन ग्रन्थमाला' की १४ वीं मणि के रूप में सन् १९४५ में प्रकाशित हुआ है । इसमें कल्की की जन्मकुण्डली इस प्रकार
है
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:
१२
मं.
११
२
१ बु. सू. शु.
१० गु.
३ श.
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
४ चं.
८ के.
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