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________________ 'विधि-विधान, कल्प, मंत्र, तंत्र, पर्व और तीर्थं ३१७ -सरस्वतीकल्प : इस नाम की एक-एक कृति अर्हदास और विजयकीति ने लिखी है। सिद्धयंत्रचक्रोद्धार : यह वि० सं० १४२८ में रत्नशेखरसूरिरचित सिरिवालकहा से उद्धृत किया हुआ अंश है। इसमें सिरिवालकहा को १९६ से २०५ अर्थात् १० गाथाएँ हैं। इसका मूल विज्जप्पवाय नामक दसर्वां पूर्व है । उपर्युक्त रत्नशेखरसूरि वज्रसेनसूरि या हेमतिलकसूरि के अथवा दोनों के शिष्य थे । टोका-इसपर चन्द्रकीर्ति ने एक टीका लिखी है । 'सिद्धचक्रयंत्रोद्धार-पूजनविधि : इसका प्रारम्भ २४ पद्यों की विधिचतुर्विशतिका' से किया गया है। मुद्रित पुस्तिका में प्रारम्भ के १३३ पद्य नहीं हैं, क्योंकि यह पुस्तक जिस हस्तलिखित पोथी से तैयार की गई है, उसमें पहला पन्ना नहीं था। इस पहली चौबीसी के पश्चात् 'सिद्धचक्रतपोविधानोद्यापन' नाम की चौबीस पद्यों की एक दूसरी चतुविशतिका है । इसके बाद 'सिद्धचक्राराधनफल' नाम की एक तीसरी चतुर्विशतिका है। ये तीनों चतुर्विंशतिकाएँ संस्कृत इन तीनों चतुर्विंशतिकाओं के उपरान्त इसमें सिद्धचक्र की पूजनविधि भी दी गई है। इसके अनन्तर नौ श्लोकों का संस्कृत में सिद्धचक्रस्तोत्र है। इसी प्रकार इसमें आठ श्लोकों का वज्रपंजरस्तोत्र, आठ श्लोकों का लब्धिपदगतिमहर्षिस्तोत्र, क्षीरादि स्नात्रविषयक संस्कृत श्लोक, जलपूजा आदि आठ प्रकार की पूजा के संस्कृत श्लोक, चौदह श्लोकों की संस्कृत में 'सिद्धचक्रयंत्रविधि२ और पन्द्रह पद्यों का जैन महाराष्ट्री में विरचित 'सिद्धचक्कप्पभावथोत्त' तथा यथास्थान 'दिक्पाल, नवग्रह, सोलह विद्यादेवी एवं यक्ष-यक्षिणी के पूजन के बारे में उल्लेख है। १. यह कृति 'नेमि-अमृत-खान्ति-निरंजन-ग्रन्थमाला' में अहमदाबाद से वि० सं० २००८ में 'सिद्धचक्रमहायंत्र' के साथ प्रकाशित हुई है। २. मुद्रित कृति में इसे 'सिद्धचक्रस्वरूपस्तवन' कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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