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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १. ज्वालिनीकल्प : __ इसकी रचना भैरवपद्मावतोकल्प इत्यादि के प्रणेता मल्लिषेण ने की है। २. ज्वालिनीकल्प : इस नाम की दूसरी तीन कृतियाँ हैं। इनमें से एक के कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है। दूसरी दो के कर्ता यल्लाचार्य-एलाचार्य एवं इन्द्रनन्दी हैं । ये दोनों सम्भवतः एक ही व्यक्ति होंगे, ऐसा जिनरत्नकोश (वि० १, पृ० १५१) में कहा है। इन्द्रनन्दी की कृति को ज्वालामालिनीकल्प, ज्वालिनीमत और ज्वालिनीमतवाद भी कहते हैं। ५०० श्लोक-परिमाण की इस कृति की रचना इन्होंने शक-संवत् ८६१ में मानखेड में कृष्णराज के राज्यकाल में की है। इसके लिए इन्होंने एलाचार्य की कृति का आधार लिया है। ये इन्द्रनन्दी वप्पनन्दी के शिष्य थे। कामचाण्डालिनीकल्प : यह भी उपयुक्त मल्लिषेण की पाँच अधिकारों में विभक्त रचना है। भारतीकल्प अथवा सरस्वतीकल्प : ___ यह भैरवपद्मावतीकल्प इत्यादि के रचयिता मल्लिषेण को कृति है। इसके प्रथम श्लोक में 'सरस्वतीकल्प' कहने की प्रतिज्ञा की गई है, जबकि तीसरे में 'भारतीकल्प' की रचना की जाती है, ऐसा कहा है। ७८वें श्लोक में 'भारतीकल्प' जिनसेन के पुत्र मल्लिषेण ने रचा है, ऐसा उल्लेख है । दूसरे श्लोक में वाणी का वर्णन करते हुए उसे तीन नेत्रवाली कहा है । चौथे श्लोक में साधक के लक्षण दिये हैं। श्लोक ५-७ में सकलीकरण का निरूपण आता है । इस कल्प में ७८ श्लोक तथा कुछ अंश गद्य में है। इसमें पूजाविधि, शान्तिक-यंत्र, वश्य-यंत्र, रंजिका-द्वादशयंत्रोद्धार, सौभाग्यरक्षा, आज्ञाक्रम एवं भूमिशुद्धि आदि विषयक मंत्र आते हैं । १. इसके विषय आदि के लिए देखिए-'अनेकान्त' वर्ष १, पृ० ४३० तथा ५५५ । २. यह कृति 'सरस्वतीमंत्रकल्प' के नाम से श्री साराभाई नवाब द्वारा प्रकाशित भैरवपद्मावतीकल्प के ११ वें परिशिष्ट के रूप में ( पृ० ६१-८) छपी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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