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विधि-विधान, कल्प, मंत्र, तंत्र, पर्व और तीर्थ
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जय और विजय जाति के नाग देवकुल के आशीविषवाले तथा जमीन पर न रहने से उनके विषय में इतना ही उल्लेख किया गया है । इसके अतिरिक्त इसमें नाग की फेन, गति एवं दृष्टि के स्तम्भन के बारे में तथा नाग को घड़े में कैसे उतारना, इसके बारे में भी जानकारी दी गई है ।
टीका- इस पर बन्धुषेण का एक विवरण संस्कृत में है । एक श्लोक से होता है, अवशिष्ट समग्र ग्रन्थ गद्य में है । इसमें तथा मंत्रोद्धार भी आता है ।
अद्भुतपद्मावतीकल्प :
से
सड़सठ
यह श्वेताम्बर उपाध्याय यशोभद्र के चन्द्र नामक शिष्य की इसमें कितने अधिकार हैं, यह निश्चितरूपसे नहीं कहा जा सकता, हुई पुस्तक के अनुसार इसमें कम से कम छः प्रकरण हैं । इनमें अनुपलब्ध हैं । सकलीकरण नामक तीसरे प्रकरण में सत्रह पद्य है | के क्रम एवं यन्त्र पर प्रकाश डालनेवाले चौथे प्रकरण में 'पात्रविधिलक्षण' नामक पाँचवें प्रकरण में सत्रह पद्य हैं । पद्य त्रुटित है । इसके पश्चात् गद्य आता है, जिसका कुछ भाग गुजराती में भी है । 'दोषलक्षण' नामक छठे प्रकरण में अठारह पद्य हैं । इसके पन्द्रहवें पद्य के अनन्तर बन्ध मन्त्र, माला-मन्त्र इत्यादि विषयक गद्यात्मक भाग आता है | सोलहवें पद्य के पश्चात् भी एक गद्यात्मक मन्त्र है ।
इनमें से
इसका प्रारम्भ कोई-कोई मंत्र
रक्तपद्मावती :
यह एक अज्ञातकर्तृक रचना है । इसकी प्रकाशित पुस्तक में यह नाम नहीं देखा जाता । इसमें रक्तपद्मावती के पूजन की विधि है । षट्कोणपूजा, षट्कोणान्तरालकर्णिकामध्यभूमिपूजा, पद्माष्टपत्रपूजा, पद्मावती देवी के द्वितीय चक्र का विधान और पद्मावती का आह्वान - स्तव - ऐसे विविध विषय इसमें आते हैं ।
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रचना ' है ।
किन्तु छपी प्रथम दो
देवी - अर्चन
पद्य हैं ।
पन्द्रहवाँ
१. इस कृति के प्रकरण ३ से ६ श्री साराभाई मणिलाल नवाब ने जो भैरवपद्मावतीकल्प सन् १९३७ में प्रकाशित किया है उसके प्रथम परिशिष्ट के रूप में ( पृ० १ - १४ ) दिये गये हैं ।
२. इस नाम से यह कृति उपर्युक्त भैरवपद्मावतीकल्प के तीसरे परिशिष्ट के रूप में ( पृ० १८ से २० ) छपी है ।
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