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________________ विधि-विधान, कल्प, मंत्र, तंत्र, पर्व और तीर्थ उद्भव हुआ है। यह सुनकर सम्प्रति ने सुहस्तिसूरि से पूछा कि दीपावली में लोग परस्पर 'जोत्कार' क्यों करते हैं ? इस पर सूरि जी ने विष्णुकुमार के चरित्र का वर्णन करके, नमचि का उपद्रव विष्णुकुमार के द्वारा शान्त किये जाने के उपलक्ष्य में लोग भोजन, वस्त्र, आभूषण इत्यादि से यह पर्व मनाते हैं-ऐसा इस कृति में कहा गया है। २. दीपालिकाकल्प : सोमसुन्दर के शिष्य जिनसुन्दर ने इसकी रचना वि० सं० १४८३ में की है। इस पद्यात्मक कृति में ४४७ पद्य हैं। ४४२ वें पद्य में कहा है कि अन्यकर्तृक दीपालिकाकल्प देखकर इसकी रचना की गई है। इसका विषय विनयचन्द्रसूरिकृत दीपालिकाकल्प से मिलता-जुलता है, क्योंकि इस कृति में भी सम्प्रति के पूछने पर आर्य सुहस्तिसूरि उत्तर के रूप में महावीरस्वामी तथा विष्णुकुमार का वृत्तान्त कहते हैं। इस कृति की विशेषता यह है कि इसमें अजैन मान्यता के अनुसार 'कलियुग' का वर्णन आता है तथा कल्की की जन्मकुण्डली रची जा सके, ऐसी बातें दी गई हैं। टोकाएं- इस पर तेजपाल ने वि० सं० १५७१ में एक अवचूरि लिखी है तथा दीपसागर के शिष्य सुखसागर ने वि० सं० १७६३ में एक स्तबक लिखा है। सेत्तुंजकप्प (शत्रुजयकल्प ): ___ जैन महाराष्ट्री के ४० पद्यों में रचित इस कृति के प्रणेता धर्मघोषसूरि कहे. जाते हैं। ___ टोका-मुनिसुन्दर के शिष्य शुभशील ने वि० सं० १५१८ में इस पर १२, ५०० श्लोक-परिमाण एक वृत्ति लिखी है, जिसे श@जयकल्पकथा, शत्रुजयकल्पकोश तथा शत्रुजयबृहत्कल्प भी कहते हैं । उज्जयन्तकल्प : यह पादलिप्तसूरि द्वारा विज्जापाहुड से उद्धृत की गई कृति है। इसमें उज्जयन्त अर्थात् गिरिनार गिरि के विषय में कुछ जानकारी दी गई होगी, ऐसा मालूम होता है। १. यह हीरालाल हंसराज ने सन् १९१० में प्रकाशित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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