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________________ विधि-विधान, कल्प, मंत्र, तंत्र, पर्व और तीर्थ ३१३ आह्वाहन, स्थापना, सन्निधि, पूजन और विसर्जन-इन पाँच उपचारों के विषय में तथा मन्त्रोद्धार, पद्यावती और पावं यक्ष के जप और होम तथा चिन्तामणि यंत्र के विषय में जानकारी प्रस्तुत की गई है। __चौथे अधिकार के प्रारम्भ में 'क्लीं' रंजिकायंत्र कैसे बनाना यह समझाया है। इसके अनन्तर रंजिकायंत्र के ह्रीं, हुँ, य, यः, ह, फट, म, ई, क्षवषट्, ल और श्रीं'-इन ग्यारह भेदों का वर्णन आता है। इन बारह यंत्रों में से अनुक्रम से एक-एक यंत्र स्त्री को मोह-मुग्ध बनानेवाला, स्त्री को आकर्षित करनेवाला, शत्रु का प्रतिषेध करनेवाला, परस्पर विद्वेष करनेवाला, शत्रु के कुल का उच्चाटन करनेवाला, शत्रु को पृथ्वी पर कौए की तरह घुमानेवाला, शत्रु का निग्रह करनेवाला, स्त्री को वश में करनेवाला, स्त्री को सौभाग्य प्रदान करनेवाला, क्रोधादि का स्तम्भन करनेवाला और ग्रह आदि से रक्षण करनेवाला है। इसमें कौए के पर तथा मृत प्राणी की हड्डी की कलम के बारे में भी उल्लेख है । पाँचवें अधिकार में अपने इष्ट, वाणी, दिव्य अग्नि, जल, तुला, सर्प, पक्षी, क्रोध, गति, सेना, जीभ एवं शत्रु के स्तम्भन का निरूपण है। इसके अतिरिक्त इसमें 'वार्ताली' मंत्र तथा कोरण्टक वृक्ष की लेखिनी का उल्लेख है। छठे अधिकार में इष्ट स्त्री के आकर्षण के विविध उपाय दिखलाये हैं । सातवें अधिकार में दाहज्वर की शान्ति का, मंत्र की साधना का, तीनों लोकों के प्राणियों को वश में करने का, मनुष्यों को क्षुब्ध करने का, चोर, शत्रु और हिंसक प्राणियों से निर्भय बनने का, लोगों को असमय में निद्राधीन करने का, विधवाओं को क्षुब्ध करने का, कामदेव के समान बनने का, स्त्री को आकर्षित करने का, उष्ण ज्वर का नाश करने का और वरयक्षिणी को वश में करने के उपाय बतलाये हैं। इसमें होम की विधि भी बतलाई गई है और उससे भाई-भाई में वैरभाव और शत्रु का मरण किस प्रकार हो इसकी रीति भी सूचित की गई है। आठवें अधिकार में 'दर्पण-निमित्त' मंत्र तथा 'कर्णपिशाचिनी' मंत्र को सिद्ध करने की विधि आती है। इसके अलावा अंगुष्ठ-निमित्त और दीपनिमित्त तथा सुन्दरी नाम की देवी को सिद्ध करने की विधि भी बतलाई है। सार्वभौम राजा, पर्वत, नदी, ग्रह इत्यादि के नाम से शुभ-अशुभ फल१. इससे सम्बद्ध रंजिका-यंत्र का २२ वां पद्य साराभाई म. नवाब द्वारा सम्पादित आवृत्ति में नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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