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________________ ३०८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रदेशविवरण-इसे सूरिविद्याकल्प भी कहते हैं । इसकी रचना जिनप्रभसूरि ने की है । ऐसा लगता है कि यही सूरिमंत्रबृहत्कल्पविवरण के नाम से प्रकाशित किया गया है। सूरिमंत्रकल्प : इसकी रचना जिनप्रभसूरि ने की है ऐसा स्वयं उन्होंने विधिमार्गप्रपा (पृ० ६७) में लिखा है। सूरिमंत्रबृहत्कल्पविवरण : ___ यह जिनप्रभसूरि की रचना है। इसमें सूरिमन्त्र के अक्षरों का फलादेश कभी गद्य में तो कभी पद्य में बतलाया है। प्रारम्भ में 'अर्हन्' को नमस्कार करके सूरिमंत्र के कल्प के तथा आप्त के उपदेश के आधार पर सम्प्रदाय का अंश बतलाने की प्रतिज्ञा की गई है । उसके पश्चात् विद्यापीठ, विद्या, उपविद्या, मंत्रपीठ और मंत्रराज-इन पाँच प्रस्थानों का उल्लेख करके पाँच प्रस्थानों के नान्दीपदों की संख्या बतलाई है । जिनप्रभसूरि ने उन्हें सोलह नान्दीपद अभिप्रेत है ऐसा कहकर उनका उल्लेख किया है। इसमें विविध रोगों को दूर करने की विधि बतलाई गई है। वर्धमानविद्याकल्पोद्धार : __इसका उद्धार वाचक चन्द्रसेन ने किया है। इसके प्रारम्भ में उपाध्याय, वाचनाचार्य, महत्तरा और प्रवर्तिनी के नित्यकृत्य बतलाये गए हैं। इसके १. यह कृति डाह्याभाई महोकमलाल ने अहमदाबाद से सन् १९३४ में प्रका शित की है । इसका संशोधन मुनि (अब सूरि) श्री प्रीतिविजयजी ने किया है। उसमें कोई-कोई पंक्ति गुजराती में देखी जाती है। सम्भवतः वह संशोधक ने जोड़ दी होगी । कहीं-कहीं जैन महाराष्ट्री में लिखा हुआ देखा जाता है । शल्योद्धार तथा निधिनिर्णय के सम्बन्ध में कई कोष्ठक दिये गये हैं । अन्त में सूरिमंत्र है। २. यह कृति जिनप्रभसूरिकृत बृहत् ह्रींकारकल्पविवरण के साथ 'सूरिमंत्र यंत्रसाहित्यादिग्रन्थावलि' पुष्प ८-९ में श्री डाह्याभाई महोकमलाल ने अहमदाबाद से प्रकाशित की है। इसमें प्रकाशनवर्ष नहीं दिया है । इसमें जिनप्रभसूरिकृत 'वद्धमाणविज्जाथवण' भी छपा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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