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________________ ३०० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १३, २७ और १२ हैं। इसके प्रारम्भ में दस श्लोक और अन्त में प्रशस्ति के रूप में आठ श्लोक हैं। मुख्यरूप से यह ग्रन्थ गद्य में है। इस ग्रन्थ के द्वारा खरतरगच्छविषयक जानकारी हमें उपलब्ध होती है। इस ग्रन्थ की मुद्रित आवृत्ति में अधिकार के अनुसार विषयानुक्रम दिया गया है। इस प्रकार सौ अधिकारों के बारे में जो जानकारी प्रस्तुत की गई है उसमें से कुछ इस प्रकार है : 'करेमि भंते' के बाद पिथिको, पर्व के दिन ही पौषध का आचरण, महावीरस्वामी के छः कल्याणक, अभयदेवसूरि के गच्छ के रूप में खरतर का उल्लेख, साधुओं के साथ साध्वियों के विहार का निषेध, द्विदलविचार, तरुण स्त्री को मूल-प्रतिमा के पूजन का निषेध, श्रावकों को ग्यारह प्रतिमा वहन करने का निषेध, श्रावण अथवा भाद्रपद अधिक हो तो पर्युषण पर्व कब करना, सूरि को ही जिन प्रतिमा की प्रतिष्ठा का अधिकार, तिथि की वृद्धि में आद्य तिथि का स्वीकार, कार्तिक दो हों तो प्रथम कार्तिक में चातुर्मासादिक प्रतिक्रमण, जिन प्रतिमा का पूजन, योगोपधान की विधि, चतुर्थी के दिन पर्युषण, जिनवल्लभ, जिनदत्त एवं जिनपति इन सूरियों की सामाचारी, पदस्थों की व्यवस्था, लोंच, अस्वाध्याय, गुरु के स्तूप की प्रतिष्ठा की, श्रावक के प्रतिक्रमण की, पौषध लेने की, दीक्षा देने की और उपधान की विधि, साध्वी को कल्पसूत्र पढ़ने का अधिकार, विशतिस्थानक तप की और शान्ति की विधि । प्रडिक्कमणसामायारी (प्रतिक्रमणसामाचारी) : यह जिनवल्लभगणी की जैन महाराष्ट्री में रचित ४० पद्यों की कृति है। . इसमें प्रतिक्रमण के बारे में विचारणा की गई है। यह सामाचारीशतक (पत्र १३७ अ-१३८ आ) में उद्धृत की गई है। सामायारी (सामाचारी) : जैन महाराष्ट्री में विरचित ३० पद्यों की इस कृति के रचयिता जिनदत्तसूरि हैं । यह उपयुक्त सामाचारीशतक (पत्र १३८ आ-१३९ आ) में उद्धृत की गई है। इसमें मूल-प्रतिमा की पूजा का स्त्री के लिए निषेध इत्यादि बातें आती हैं। १ पोसहविहिपयरण (पौषधविधिप्रकरण) : यह भी उपयुक्त जिनवल्लभगणी की कृति है । इसका सारांश पन्द्रह पद्यों में जिनप्रभसूरि ने विहिमग्गप्पवा (विधिमार्गप्रपा) के पृ० २१-२२ में दिया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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