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विधि-विधान, कल्प, मंत्र, तंत्र, पर्व और तीर्थ
२९९ कृति के प्रारम्भ में एक और अन्त में प्रशस्ति के रूप में छः श्लोक हैं। पहले श्लोक में सम्यग्दर्शननन्दी इत्यादि की विधिरूप-सामाचारी का कथन करने की प्रतिज्ञा की गई है। इसके पश्चात् इसमें निम्नलिखित विषयों को स्थान दिया गया है :
देशविरति-सम्यक्त्वारोपनन्दी की विधि, केवल देशविरतिनन्दी की विधि, श्रावकों के व्रतों के करोड़ों भंगों के साथ श्रावक के व्रत और अभिग्रहों के प्रत्याख्यान की विधि, उपासक की प्रतिमा की नन्दी की विधि, उपासक की प्रतिमाओं के अनुष्ठापन की विधि, उपधान की नन्दी की विधि, उपधान को विधि, मालारोपण की नन्दी की विधि, सामायिक और पौषध लेने की तथा इन दोनों के पारने की विधि, पौषधिक दिनकृत्य की विधि, बत्तीस प्रकार के तप का कुलक, तप के यन्त्र, कल्याणक, श्रावक के प्रायश्चित्तों का यन्त्र, प्रव्रज्या की विधि, लोंच की विधि, उपस्थापना की विधि, रात्रिक आदि प्रतिक्रमण से गभित साधु-दिनचर्या, योग के उत्क्षेप और निक्षेपपूर्वक योगनन्दी की विधि, योग के अनुष्ठान की विधि, योग के तप की विधि, योगक्षमाश्रमण की विधि, योग के कल्प्याकल्प्य की विधि, गणी और योगी के उपहनन की विधि, अनध्याय की विधि, कालग्रहण की विधि, वसति और काल के प्रवेदन की विधि, स्वाध्याय के प्रस्थापन की विधि, कालमण्डलप्रतिलेखन की विधि, वाचनाचार्य के स्थापन की तथा उसके विद्यायन्त्रलेखन की विधि, आचार्य और उपाध्याय की प्रतिष्ठा की विधि और महत्तरा के स्थापन की विधि ।
प्रसंगवश इस ग्रन्थ में वर्धमान विद्या, संस्कृत में छः श्लोकों का चैत्यवन्दन, मिथ्यात्व के हेतुओं का निरूपण करनेवाली आठ गाथाएँ, उपधानविधिविषयक पैंतालीस गाथाएँ, तप के बारे में पच्चीस गाथाओं का कुलक, संस्कृत के छत्तीस श्लोकों में रोहिणी की कथा, तैतीस आगमों के नाम आदि बातें भी आती हैं। प्रश्नोत्तरशत किंवा सामाचारीशतक :
इसके' कर्ता सोमसुन्दरगणी हैं। इसमें सौ अधिकार आते हैं और वे पाँच प्रकाशों में विभक्त हैं। इन प्रकाशों के अधिकारों की संख्या ३७, ११,
१. यह ग्रन्थ सामाचारीशतक के नाम से 'जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार' ने सन्
१९३९ में प्रकाशित किया है ।
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