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________________ २९८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अणुट्ठाणविहि ( अनुष्ठानविधि ) अथवा सुहबोहसामायारी ( सुखबोधसामाचारी): धनेश्वरसूरि के शिष्य श्रीचन्द्रसूरि ने जैन महाराष्ट्री में मुख्यतया गद्य में इसकी रचना की है। सूरि जी ने मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र आदि ग्रन्थ भी लिखे हैं। अवतरणों से युक्त प्रस्तुत कृति १३८६ श्लोक-परिमाण है। इसके प्रारम्भ में चार पद्य हैं। आद्य पद्य में महावीरस्वामी को नमस्कार करके अनुष्ठानविधिः कहने की प्रतिज्ञा की है। इसके बाद के तीन पद्यों में इस कृति के बीस द्वारों के नाम दिये गये हैं। उनमें निम्नांकित विषयों का निरूपण आता है : सम्यक्त्वारोपण एवं व्रतारोपण की विधि, पाण्मासिक सामायिक, दर्शनादि प्रतिमाएँ, उपधान की विधि, उपधान प्रकरण, मालारोपण की विधि, इन्द्रियजय आदि विविध तप, आराधना, प्रव्रज्या, उपस्थापना एवं लोंच की विधि, रात्रिक आदि प्रतिक्रमण, आचार्य, उपाध्याय एवं महत्तरा-इन तीन पदों की विधि, गण की अनुज्ञा, योग, अचित्त परिष्ठापना और पौषध की विधि, सम्यक्त्व आदि की महिमा तथा प्रतिष्ठा, ध्वजारोपण और कलशारोपण की विधि । प्रस्तुत कृति का उल्लेख जइजीयकप्प ( यतिजीतकल्प ) की वृत्ति में साधुरत्नसूरि ने किया है। / सामाचारी: तिलकाचार्य की यह कृति" मुख्यतः संस्कृत गद्य में रचित है। ये श्री चन्द्रप्रभसूरि के वंशज और शिवप्रभ के शिष्य थे। १४२१ श्लोक-परिमाण इस १. यह कृति सुबोधा-सामाचारी के नाम से देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था ने सन् १९२२ में छपवाई है। २. किसी ने ५३ गाथाओं का जैन महाराष्ट्री में यह प्रकरण लिखा है। इसका प्रारम्भ ‘पंचनमोक्कारे किल' से होता है । ३. सैंतीस प्रकार के तप का स्वरूप संस्कृत में दिया गया है। इसमें मुकुट सप्तमी आदि का भी निरूपण है। ४. विविधप्रतिष्ठाकल्प के आधार पर इसकी योजना की गई है ऐसा अन्त में कहा है। ५. यह कृति प्रकाशित है। इसकी एक ताडपत्रीय हस्तलिखित प्रति वि० सं० १४०९ की मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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