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षष्ठ प्रकरण
विधि-विधान, कल्प, मंत्र, तंत्र, पर्व और तीर्थ
पूजाप्रकरण :
इसे पूजाविधि-प्रकरण' भी कहते हैं। इसके कर्ता वाचक उमास्वाति हैं ऐसा कई मानते हैं । १९ श्लोक की यह कृति मुख्यतया अनुष्टुप् छन्द में है । इसमें गृहचैत्य ( गृह-मन्दिर ) कैसी भूमि में बनाना चाहिये, देव की पूजा करने वाले को किस दिशा या किस विदिशा से पूजा करनी चाहिए, पुष्प-पूजा के लिये कौन से और कैसे पुष्पों का उपयोग करना चाहिये, वस्त्र कैसे होने चाहिए इत्यादि बातों का विचार किया गया है। इसके अतिरिक्त नौ अंग की पूजा, अष्टप्रकारी पूजा तथा इक्कीस प्रकार की पूजा के ऊपर भी प्रकाश डाला गया है। दशभक्ति :
'भक्ति' के नाम से प्रसिद्ध कृतियाँ दो प्रकार की मिलती हैं : १. जैन शौरसेनी में रचित और २. संस्कृत में रचित । प्रथम प्रकार की कृतियों के
१. बंगाल की 'रॉयल एशियाटिक सोसाइटी' द्वारा वि० सं० १९५९ में
प्रकाशित सभाष्य तत्त्वार्थाधिगमसूत्र के द्वितीय परिशिष्ट के रूप में यह कृति छपी है । उसमें जो पाठान्तर दिये गये हैं उनमें पन्द्रहवें श्लोक के स्थान पर सम्पूर्ण पाठान्तर है । इसका श्री कुंवरजी आनन्दजोकृत गुजराती अनुवाद 'श्री जम्बूद्वीपसमास भाषान्तर पूजा-प्रकरण भाषान्तरसहित' नाम से जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर ने वि० सं० १९९५ में प्रकाशित 1 किया है। २. इस प्रकार की भत्ति ( भक्ति ) प्रभाचन्द्र की क्रियाकलाप नामक संस्कृत
टीका तथा पं० जिनदास के मराठी अनुवाद के साथ सोलापुर से सन् १९२१ में प्रकाशित हुई है। उपर्युक्त दोनों प्रकार की भक्ति 'दशभक्त्यादिसंग्रह' में संस्कृत अन्वय एवं हिन्दी अन्वय तथा भावार्थ के साथ 'अखिल विश्व जैन मिशन' ने सलाल ( साबरकांठा ) से वीर-संवत् २४८१ में प्रकाशित की है।
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