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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुरुपारतंतथोत्त ( गुरुपारतंत्र्यस्तोत्र ) : अपभ्रंश के २१ पद्यों में रचित इस कृति' के रचयिता जिनदत्तसूरि हैं। इसे सुगुरुपारतंत्र्यस्तोत्र, स्मरणा और मयरहियथोत्त भी कहते हैं। इसमें कतिपय मुनिवरों का गुणोत्कीर्तन है। उदाहरणार्थ-सुधर्मस्वामी, देवसूरि, नेमिचन्द्रसूरि, उद्योतनसूरि इत्यादि ।
टीकाएं-जयसागरगणी ने वि० सं० १३५८ में इस पर एक टीका लिखी है । इसके अतिरिक्त धर्मतिलक ने, समयसुन्दरगणी ने तथा अन्य किसी ने भी एक-एक टीका लिखी है । समयसुन्दरगणी की टीका 'सुखावबोधा' प्रकाशित भी हो चुकी है। धर्मलाभसिद्धि :
यह हरिभद्रसूरि ने लिखी है, ऐसा गणहरसद्धयग ( गणधरसार्धशतक ) की सुमतिकृत टीका में उल्लेख है । यह कृति अभी तक अनुपलब्ध है।
१. यह स्तोत्र संस्कृत-छाया के साथ 'अपभ्रंशकाव्यत्रयी' में एक परिशिष्ट के
रूप में सन् १९२७ में छपा है। इसके अतिरिक्त समयसुन्दरगणी की सुखावबोधा नाम की टीका के साथ यह सप्तस्मरणस्तव में 'जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार' ने सन् १९४२ में छपवाया है।
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