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________________ अनगार और सागार का आचार २९१ है | श्राद्धविधिवृत्ति का उल्लेख श्राद्धप्रतिक्रमणवृत्ति में और आचारप्रदीप का उल्लेख श्राद्धविधिवृत्ति में आता है । इसका कारण आचारप्रदीप के उपोद्घात ( पत्र २ आ तथा ३ अ ) में ऐसा लिखा है कि विषय पहले से निश्चित किये गये होंगे और ग्रन्थरचना बाद में हुई होगी, परन्तु मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रन्थ लिखे जाने के पश्चात् कालान्तर में उसमें अभिवृद्धि की गई होगी और उसी के परिणामस्वरूप यह स्थिति पैदा हुई होगी । प्रस्तुत कृति पाँच प्रकाशों में विभक्त है । उनमें क्रमशः ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार और वीर्याचार-आचार के इन पाँच भेदों का, प्रत्येक के उपभेदों के साथ, निरूपण किया है। साथ ही इसमें विविध कथानक रे तथा संस्कृत एवं प्राकृत उद्धरण दिये गये हैं । अन्त में पन्द्रह श्लोकों की प्रशस्ति है । इसके प्रथम प्रकाश का गुजराती अनुवाद रामचन्द्र दीनानाथ शास्त्री ने किया और वह छपा भी हैं । चरित्रसार : अजितसेन के शिष्य ने इसकी रचना की है । चारित्रसार किंवा भावनासारसंग्रह : १७०० श्लोक-परिमाण यह कृति चामुण्डराज अपर नाम रणरंगसिंह ने लिखी है । ये जिनसेन के शिष्य थे । १. यह विषय निशीथ के भाष्य एवं चूर्णि तथा दशवैकालिक की नियुक्ति में आता है । २. पृथ्वीपाल नृप के कथानक में समस्याएँ तथा गणित के उदाहरण दिये गये हैं । लेखक ने इनके विषय में 'राजकन्याओनी परीक्षा' और 'राजकन्याओनी गणितनी परीक्षा' इन दो लेखों में विचार किया है । पहला लेख 'जैनधर्मप्रकाश' ( पु० ७५, अंक २-३-४ ) में छपा है । गणित के विषय में अंग्रेजी में भी लेखक ने एक लेख लिखा है जो Annals of Bhandarkar Oriental Research Institute. (Vol. xviii) छपा है । २. यह कृति मणिकचंद्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला में वीर-संवत् २४४३ में प्रकाशित हुई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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