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अनगार और सागार का आचार
- जइजीयकप्प ( यतिजीतकल्प) :
इसकी रचना जैन महाराष्ट्री में धर्मघोषसूरि के शिष्य और २८ यमकस्तुति के प्रणेता सोमप्रभसूरि ने की है । इसमें ३०६ गाथाएँ हैं । इसकी प्रारम्भ की २४ गाथाएँ जिनभद्रगणीकृत जीतकल्प में से ली गई हैं । इसमें श्रमणों के आचार का निरूपण हैं ।
टीकाएँ - सोमतिलकसूरि ने इस पर एक वृत्ति लिखी थी, किन्तु वह अप्राप्य है । दूसरी वृत्ति देवसुन्दरसूरि के शिष्य साधुरत्न ने वि० सं० १३५६ में लिखी है । यह ५७०० श्लोक - परिमाण है । इसमें उन्होंने उपर्युक्त सोम-तिलकसूरि की वृत्ति का उल्लेख किया है ।
- जइसामायारी ( यति सामाचारी) :
कालकंसूरि के सन्तानीय और वि० सं० १४१२ में पार्श्वनाथचरित्र के रचयिता श्री भावदेवसूरि ने यतिसामाचारी' संकलित की है । इसमें १५४ गाथाएँ हैं ।" यह संक्षिप्त रचना है ऐसा पहली गाथा में कहा है और वह सच भी है, क्योंकि देवसूरि ने इसी नाम की जो कृति रची है वह विस्तृत है । इन्हीं भावदेवसूरि ने अलंकारसार भी लिखा है ।
उत्तराध्ययन एवं ओघनियुक्ति में सामाचारी दी गई है, विहार आदि की भी बातें आती हैं, जबकि प्रस्तुत कृति जैन दिनचर्या पर - प्राभातिक जागरण से लेकर संस्तारक तक की उनकी प्रवृत्तियों पर - प्रकाश डालती है ।
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टीका - इस पर मतिसागरसूरि ने संस्कृत में संक्षिप्त व्याख्या - - अवचूरि लिखी है । यह ३५०० श्लोक - परिमाण है । इसके प्रारम्भ में चार श्लोक हैं अवशिष्ट सम्पूर्ण टीका गद्य में है । इस कृति में कुछ अवतरण भी आते हैं ।
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परन्तु उसमें साधुओं की विधि पर्यन्त की
१. यह नाम पहली गाथा में दिया गया है, जबकि अन्तिम गाथा में 'जइदिणचरिया' ऐसा नाम आता है । पंचासग' के बारहवें पंचासग का नाम भी इस मायारी है | यह 'यतिदिनचर्या' के नाम से मतिसागरसूरिकृत व्याख्या के साथ ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था ने सन् १९३६ में प्रकाशित की है ।
२. इसका ग्रन्थाग्र १९२ श्लोक-परिमाण है ।
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