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________________ २८६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पंचलिंगी : जैन महाराष्ट्री में जिनेश्वरसूरिरचित इस कृति' में १०१ पद्य है। इसमें सम्यक्त्व के शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य इन पाँच लिंगों का निरूपण है। टीकाएँ-इस पर जिनचन्द्रसूरि के शिष्य जिनपतिसूरि ने ६६०० श्लोकपरिमाण एक विवरण लिखा है। इस विवरण पर जिनपतिसूरि के शिष्य जिनपाल ने टिप्पण लिखा है । इसके अतिरिक्त सर्वराज ने १३४८ श्लोक-परिमाण एक लघुवृत्ति लिखी है। दंसणसुद्धि ( दर्शनशुद्धि ) : इसे सम्यक्त्वप्रकरण भी कहते हैं। इसकी रचना जयसिंह के शिष्य चन्द्रप्रभ ने जैन महाराष्ट्री के २२६ पद्यों में की है। इसमें सम्यक्त्व का अधिकार है। टीकाएं-इस पर विमलगणी ने वि० सं० १९८४ में १२,१०० श्लोकपरिमाण एक टीका लिखी है। ये मूल ग्रन्थ के कर्ता के शिष्य धर्मघोषसूरि के शिष्य थे। __देवभद्र ने भी इस पर चन्द्रप्रभ के शिष्य शान्तिभद्रसूरि की सहायता से एक टीका लिखी है। यह टीका ३००८ श्लोक-परिमाण है। ये देवभद्र. विमलगणी के शिष्य थे। सम्यक्त्वालङ्कार : यह विवेकसमुद्रगणी की रचना है। इसका उल्लेख जैसलमेर के सूची-पक्र. में किया गया है। यतिदिनकृत्य : ___ यह हरिभद्रसूरि की कृति मानी जाती है। इसमें श्रमणों की दैनन्दिन प्रवृत्तियों के विषय में निरूपण है। १. यह कृति जिनपति के विवरण के साथ "जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फंड' सूरत से सन् १९१९ में प्रकाशित हुई है। २. देवभद्र की टीका के साथ यह ग्रन्थ हीरालाल हंसराज ने सन् १९१३ में छपाया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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