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________________ अनगार और सागार का आचार २८५ टीका-इस पर माथुर संघ के क्षेमकीर्ति के शिष्य रत्नकीर्ति ने २२०० श्लोक-परिमाण एक टीका लिखी है। इसमें शुभचन्द्राचार्यकृत ज्ञानार्णव, परमात्मप्रकाश एवं समयसार में से उद्धरण दिये गये हैं। माइल्ल धवल ने जिस आराधनासार पर टीका लिखी है वह प्रस्तुत कृति है या अन्य यह ज्ञात नहीं। - आराधना: यह माधवसेन के शिष्य अमितगति की रचना है। यह शिवार्यकृत 'आराहणा' का संस्कृत पद्यात्मक अनुवाद है । सामायिकपाठ किंवा भावनाद्वात्रिंशिका : यह अज्ञातकर्तृक रचना' है । इसमें ३३ श्लोक हैं। - आराहणापडाया ( आराधनापताका): इसकी रचना वीरभद्र ने वि० सं० १०७८ में जैन महाराष्ट्री में ९९० ‘पद्यों में की है । इसमें भत्तपरिण्णा, पिण्डनिज्जुत्ति इत्यादि की गाथाएँ दृष्टिगोचर होती हैं। आराहणाकुलय ( आराधनाकुलक): यह नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि ने जैन महाराष्ट्री में ८५ पद्यों में रचा है। संवेगरंगशाला : इसके कर्ता सुमतिवाचक और प्रसन्नचन्द्रसूरि के शिष्य देवभद्रसूरि हैं। इसका उल्लेख कर्ता ने पार्श्वनाथचरित्र में तथा वि० सं० ११५८ में रचित कथारत्नकोश में किया है। इसे आराधनारत्न भी कहते हैं। इसकी एक भी हस्तलिखित प्रति अबतक उपलब्ध नहीं हुई है। आराहणासत्थ (आराधनाशास्त्र): संभवतः यह देवभद्र की कृति है । १. माणिकचंद्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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