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________________ अनगार और सागार का आचार २७७ यह पन्द्रह परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें श्रावक के आचार का निरूपण है। कुल १४६४ श्लोकों की इस कृति का प्रारम्भ पंच परमेष्ठी, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, सरस्वती और गुरु के स्मरण से किया गया है। अन्त में प्रशस्ति के रूप में नौ श्लोक हैं । इन पन्द्रह परिच्छेदों के मुख्य विषय इस प्रकार हैं : १. संसार का स्वरूप, २. मिथ्यात्व का स्वरूप और उसके त्याग का उपदेश, ३. जीवादि पदार्थ का निरूपण, ४. चार्वाक, विज्ञानाद्वैत, ब्रह्माद्वैत, और पुरुषाद्वैत का खण्डन तथा कुदेव का स्वरूप, ५. मद्य, मांस, मधु, रात्रि भोजन और क्षीरवृक्ष के फल का त्याग, ६. अणुव्रत, ७. व्रत की महिमा, ८. छः आवश्यक, ९. दान का स्वरूप, १०. पात्र, कुपात्र और अपात्र की स्पष्टता, ११. अभयदान का फल, १२. तीर्थंकर आदि तथा उपवास का स्वरूप, १३. संयम का स्वरूप, १४. बारह अनुप्रेक्षा तथा १५. दान, शील, तप और भावना का निरूपण । श्रावकाचार: ४६२२ श्लोक-परिमाण अंशतः संस्कृत और अंशतः कन्नड़ में रचित इस ग्रन्थ के कर्ता कुमुदचन्द्र के शिष्य माघनन्दी हैं। इसे पदार्थसार भी कहते हैं । इन माघनन्दी को वि० सं० १२६५ में 'होयल' वंश के नरसिंह नाम के नृपति ने दान दिया था। इन्होंने शास्त्रसारसमुच्चय, श्रावकाचारसार और सिद्धान्तसार भी लिखा है। टीका-कुमुदचन्द्र ने इस पर एक टीका लिखी है । श्रावकधर्मविधि : यह ग्रन्थ जिनपतिसूरि के शिष्य जिनेश्वर ने वि० सं० १३०३ में लिखा है । इसे श्रावकधर्म भी कहते हैं । टीका-इस पर १५१३१ श्लोक-परिमाण एक टीका लक्ष्मीतिलकगणी ने अभयतिलक की सहायता से वि० सं० १३१७ में लिखी है । १. प्रथम परिच्छेद के नवें पद्य में उपासकाचार के विचार का सार कहने की प्रतिज्ञा की गई है। १८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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