________________
२७६
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हैं । विवरणकार का दीक्षा-समय का नाम धनदेव था। यह विवरण उपयुक्त १३७ गाथाओं के अतिरिक्त एक और गाथा पर भी है।' स्वोपज्ञ टीका का विस्तृत स्पष्टीकरण इस विवरण में है।
इस विवरण में कुदेव, कुगुरु और कुधर्म का स्वरूप; मिथ्यात्व के आभिग्राहिक आदि प्रकार; जमालि के चरित्र में 'क्रियमाण कृत' विषयक चर्चा; गोष्ठामाहिल के वृत्तान्त में आर्यरक्षित से सम्बद्ध कई बातें, गोष्ठामाहिल के द्वारा मथुरा में नास्तिक का किया गया पराजय; चिलातीपुत्र के अधिकार में वैदिक वाद; प्रथम व्रत के स्वरूप का विचार करते समय २६३ कर्मादान; सामायिक के विषय में नयविचार; पौषध के अतिचारों के कथन के समय स्थण्डिल के १०२४ प्रकार तथा संलेखना के विषय में निर्यामक के प्रकार इस प्रकार विविध बातों का निरूपण किया गया है।
इस विवरण का चक्रेश्वरसूरि आदि ने संशोधन किया है । इस ९५०० श्लोक-परिमाण विवरण में ( पत्र २४२ आ ) जिन वसुदेवसूरि का निर्देश है उनके 'खंतिकुलय' के अलावा दूसरे ग्रंथ जानने में नहीं आये।
संघतिलकसूरि के शिष्य देवेन्द्रसुरि ने वि० सं० १४५२ में अभिनववृत्ति नाम की एक वृत्ति लिखी है।
उपासकाचार :
वि० सं० १०५० में रचित यह पद्यात्मक संस्कृत कृति२ सुभाषितरत्नसन्दोह के रचयिता और माथुर संघ के माधवसेन के शिष्य अमितगति की रचना है।
१. यह १३८ वीं गाथा विवरणकार को मिली होगी। बाकी मूल कर्ता ने
न तो वह स्वतंत्र दी है और न उस पर टीका ही लिखी है । उस गाथा में कहा है कि कक्कसूरि के शिष्य जिनचन्द्रगणी ने आत्मस्मरण के लिए और अन्य लोगों पर उपकार करने की दृष्टि से इस नवपद ( प्रकरण)
की रचना की है। २. यह वि० सं० १९७९ में 'अनन्तकीर्ति दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला' में प्रका
शित हुआ है । इसकी पं० भाग चन्दकृत वचनिका से युक्त दूसरी आवृत्ति'श्रावकाचार' के नाम से श्री मूलचन्द किसनदास कापड़िया ने वि० सं० २०१५ में छपवाई है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org