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________________ २६२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अधिक निर्जरा करने वालों के बीस वर्गों का उल्लेख किया गया है। इसी प्रबन्ध के चौथे अधिकार में संसार को समुद्र इत्यादि विविध उपमाएँ दी गई हैं । टोका-गम्भीरविजयगणी ने वि० सं० १९५२ में इस पर टीका लिखी है और वह प्रकाशित भी हुई है । इसमें कहीं-कहीं त्रुटि देखी जाती है । टब्बा-इसके कर्ता वीरविजय हैं । यह भी छपा है । अध्यात्मोपनिषद् : यह भी न्यायाचार्य यशोविजयगणी की कृति है ।२ यह चार विभागों में विभक्त है और उनकी पद्य-संख्या अनुक्रम से ७७, ६५, ४४ और २३ है। इस प्रकार इसमें कुल २०३ पद्य हैं। इनमें से अधिकांश पद्य अनुष्टुप् में हैं। विषय-प्रत्येक अधिकार का नाम अन्वर्थ है । वे नाम हैं : शास्त्रयोगशुद्धि, ज्ञानयोगशुद्धि, क्रियायोगशुद्धि और साम्ययोगशुद्धि । प्रारम्भ में एवम्भूत नय के आधार पर अध्यात्म का अर्थ दिया गया है । ये अर्थ निम्नानुसार हैं : १. आत्मा का ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तप आचार और वीर्याचार इन पाँच आचारों में विहरण 'अध्यात्म' है। २. बाह्य व्यवहार से महत्त्व प्राप्त चित्त को मैत्री आदि चार भावनाओं से वासित करमा 'अध्यात्म' है । प्रस्तुत कृति के विषयों की विशेष जानकारी 'यशोदोहन' नामक ग्रन्थ (पृ० २७९-८०) में दी गई है। साथ ही ज्ञानसार (पृ० २८० ) में, वैराग्यकल्पलता ( प्रथम स्तबक, पृ० २८१ ) में तथा वीतरागस्तोत्र (प्रक० ८) में प्रस्तुत कृति के जो पद्य देखे जाते हैं उसका भी निर्देश किया गया है । १. इस विषय का निरूपण आचारांग ( श्रु० १, अ० ४) और उसकी नियुक्ति ( गा० २२२-२३ ) की टीका ( पत्र १६० आ) में शीलांकसूरि ने किया है। २. यह कृति 'जैनधर्म प्रसारक सभा' ने वि० सं० १९६५ में प्रकाशित की थी। उसके बाद 'श्री श्रुतज्ञान अमीधारा' के पृ० ४७ से ५७ में यह सन् १९३६ में छपी है। यह अध्यात्मसार और ज्ञानसार के साथ भी प्रकाशित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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