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योग और अध्यात्म
२६३ १. अध्यात्मबिन्दु :
इस नाम का एक ग्रन्थ न्यायाचार्य यशोविजयगणी ने लिखा था ऐसा कुछ लोगों का कहना है, परन्तु ऐसा मानने के लिए कोई प्रमाण नहीं मिलता।
२. अध्यात्मबिन्दु :
यह उपाध्याय हर्षवर्धन की कृति है। इसमें ३२ श्लोक है। इसलिए इसे 'अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिशिका' भी कहते हैं। इसकी प्रशस्ति के आधार पर इसके कर्ता का नाम हंसराज भी है, ऐसा प्रतीत होता है।' अध्यात्मोपदेश :
यह श्री यशोविजयगणी की कृति है ऐसा कई लोग मानते हैं, परन्तु इसके लिए कोई विश्वसनीय प्रमाण अब तक किसी ने उपस्थित नहीं किया है। अध्यात्मकमलमार्तण्ड :
यह दिगम्बर राजमल्ल कवि विरचित २०० श्लोक-परिमाण की कृति है।' इसके अतिरिक्त इन्होंने वि० सं १६४१ में लाटी संहिता, पंचाध्यायी (अपूर्ण) तथा वि० सं० १६३२ में जम्बूस्वामिचरित ये तीन कृतियाँ भी रची है। प्रस्तुत कृति चार परिच्छेदों में विभक्त है और उनमें क्रमशः १४, २५, ४२ और २० श्लोक आते हैं । इस प्रकार इसमें कुल १०१ श्लोक है। इसकी एक हस्तप्रति में इनके अलावा ५ पद्य प्राकृत में और चार संस्कृत में हैं। हस्तप्रति के लेखक ने प्रशस्ति के दो श्लोक लिखे हैं।
१. इस कृति को स्वोपज्ञ विवरणसहित जो चार हस्तप्रतियाँ बम्बई सरकार के
स्वामित्व की हैं उनका परिचय D CG CM ( Vol. XVIII, Pt.
1, pp. 162-66 ) में दिया गया है। २. यह 'माणिकचंद्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला' में वि० सं० १९९३ में प्रकाशित
हुआ है। प्रारम्भ में इसी कवि का जम्बूस्वामिचरित आता है। अन्त में
अध्यात्मकमलमार्तण्ड से सम्बन्धित अधिक पद्य भी दिये गये हैं। ३. इसके प्रणेता ने इसे मंगलाचरण में ग्रन्थराज कहा है। इसमें दो प्रकरण
हैं। पहले में ७७० श्लोकों में द्रव्यसामान्य का और दूसरे में द्रव्यविशेष का निरूपण है । यह कृति धर्म का बोध कराने का सुगम साधन है।
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