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योग और अध्यात्म
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अध्यात्मसार:
यह पद्यात्मक कृति रंगविलास ने लिखी है । यह प्रकाशित है। अध्यात्मसार।
यह न्यायाचार्य यशोविजयगणी की अध्यात्म-विषयक संस्कृत रचना है। यह सात प्रबन्धों में विभक्त है। इन प्रबन्धों में क्रमशः ४, ३, ४, ३, ३, २ और २ इस प्रकार कुल २१ अधिकार आते हैं । यह कृति १३०० श्लोक-परिमाण है। इसमें कुल ९४९ पद्य हैं ।
विषय-२१ अधिकारों के विषय प्रबन्धानुसार अनुक्रम से इस प्रकार हैं :
प्रबन्ध १-अध्यात्मशास्त्र का माहात्म्य, अध्यात्म का स्वरूप, दम्भ का त्याग और भव का स्वरूप ।
प्रबन्ध २-वैराग्य का सम्भव, उसके भेद और वैराग्य का विषय । प्रबन्ध ३-ममता का त्याग, समता, सदनुष्ठान और चित्तशुद्धि ।
प्रबन्ध ४-सम्यक्त्व, मिथ्यात्व का त्याग तथा असद्ग्रह अथवा कदाग्रह का त्याग ।
प्रबन्ध ५-योग, ध्यान और ध्यान ( स्तुति )। प्रबन्ध ६-आत्मा का निश्चय । प्रबन्ध ७-जिनमत की स्तुति, अनुभव और सज्जनता। प्रथम प्रबन्ध के अध्यात्मस्वरूप नामक द्वितीय अधिकार में एक-एक से
१. इस कृति को जैनशास्त्रकथासंग्रह ( सन् १८८४ में प्रकाशित ) की द्वितीय
आवृत्ति में स्थान मिला है। यही कृति प्रकरणरत्नाकर ( भा० २ ) में वीरविजय के टब्बे के साथ सन् १९०३ में प्रकाशित की गई थी। नरोत्तम भाणजी ने यह मूल कृति गम्भीरविजयगणी की टीका के साथ वि० सं० १९५२ में छपवाई थी। उन्होंने मूल उपर्युक्त टीका तथा मूल के गुजराती अनुवाद के साथ सन् १९१६ में छपवाया था। "जैनधर्म प्रसारक सभा' की ओर से मूल कृति उपयुक्त टीका के साथ प्रकाशित की गई थी। यही मूल कृति अध्यात्मोपनिषद् और ज्ञानसार के साथ नगीनदास करमचन्द ने 'अध्यात्मसार-अध्यात्मोपनिषद्-ज्ञानसार-प्रकरणत्रयी' नाम से वि० सं० १९९४ में प्रकाशित की है।
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