SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योग और अध्यात्म २५५. जिनरत्नकोश ( वि० १, पृ० १९९ ) में ध्यानविषयक जिन कृतियों का निर्देश है उनमें से ध्यानविचार एवं ध्यानशतक पर विचार किया गया । अब अवशिष्ट कृतियों के बारे में किञ्चित् विचार किया जाता है। ध्यानचतुष्टयविचार : इसके नाम के अनुसार इसमें आतं, रौद्र, धर्म और शुक्ल ध्यान के चार प्रकारों का निरूपण होना चाहिए । ध्यानदीपिका : यह सकलचन्द्र ने वि० सं० १६२१ में रची है। ध्यानमाला: यह नेमिदास की कृति है। ध्यानसार : इस नाम की दो कृतियाँ हैं। एक के कर्ता यशःकीति हैं, दूसरे के कर्ता का नाम अज्ञात है। ध्यानस्तव : यह भास्करनन्दी की संस्कृत रचना है। ध्यानस्वरूप : इसमें भावविजय ने वि० सं० १६९६ में ध्यान का स्वरूप निरूपित किया है। अनुप्रेक्षा : __ इसे भावना भी कहते हैं। इसका निरूपण श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ने प्राकृत, संस्कृत, कन्नड़, गुजराती आदि भाषाओं में एक या दूसरे रूप से किया है । मरणसमाहि नामक प्रकीर्णक (श्वेताम्बरीय आगम) में अनुप्रेक्षा से सम्बन्धित ७० गाथाएँ हैं। १. बारसाणुवेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा) : दिगम्बराचार्य श्री कुन्दकुन्द की इस कृति' में ९१ गाथाएँ हैं। इसके नाम से सूचित निम्नलिखित बारह अनुप्रेक्षाओं का इसमें निरूपण आता है : १. यह 'माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला' में वि० सं० १९७७ में प्रकाशित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy