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________________ योग और अध्यात्म २५३ विषय कम-ज्यादा विस्तार से इस कृति में निरूपित हुआ है । इनका यहाँ क्रमशः विचार किया जाता है । ध्यानमार्ग के चौबीस प्रकारों के नाम दो हिस्सों में निम्नांकित हैं : १. ध्यान, २. शून्य, ३. कला, ४. ज्योति, ५. बिन्दु, ६. नाद, ७. तारा, ८. लय, ९. लव, १०. मात्रा, ११. पद और १२. सिद्धि । __ इन बारहों के साथ प्रारम्भ में 'परम' शब्द लगाने पर दूसरे बारह प्रकार होते हैं, जैसे-परम ध्यान, परम शून्य आदि । दोनों नामों का जोड़ लगाने पर कुल २४ होते हैं । इन चौबीस प्रकारों का स्वरूप समझाते समय शून्य के द्रव्यशून्य और भावशून्य ऐसे दो भेद करके द्रव्यशन्य के बारह प्रभेद अवतरण द्वारा गिनाये हैं; जैसे-क्षिप्त चित्त, दीप्त चित्त इत्यादि । कला से लेकर पद तक के नवों के भी द्रव्य और भाव से दो-दो प्रकार किये हैं । भावकला के बारे में पुण्य(व्य) मित्र का दृष्टान्त दिया है। परमबिन्दु के स्पष्टीकरण में ११ गुणश्रेणी गिनाई है। द्रव्यलय अर्थात् वज्रलेप इत्यादि द्रव्य द्वारा वस्तुओं का संश्लेष होता है ऐसा कहा है। ध्यान के २४ प्रकारों को करण के ९६ प्रकारों से गुनने पर २३०४ होते हैं। इसे ९६ करणयोगों से गुनने पर २, २१, १८४ भेद होते हैं । इसी प्रकार उपयुक्त २३०४ को ९६ भवनयोगों से गुनने पर २, २१, १८४ भेद होते हैं । इन दोनों की जोड़ ४, ४२, ३६८ है। __ परमलव यानी उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणी। परममात्रा अर्थात् चौबीस वलयों द्वारा वेष्टित आत्मा का ध्यान । ऐसा कहकर प्रथम वलय के रूप में शुभाक्षर वलय से आरम्भ करके अन्तिम ९६ करणविषयक वलयों का उल्लेख अमुक के स्पष्टीकरण के साथ किया गया है । चिन्ता के दो प्रकार और प्रथम प्रकार के दो उपप्रकार बतलाये हैं। योगारूढ़ होनेवाले के अभ्यास के ज्ञानभावना आदि चार प्रकार और उनके उपप्रकार, भवनयोगादि के योग, वीर्य आदि आठ प्रकार, उनके तीन-तीन उपप्रकार और उनके प्रणिधान आदि चार-चार भेद-इस प्रकार कुल मिलाकर ९६ भेद; प्रणिधान आदि को समझाने के लिए अनुक्रम से प्रसन्नचन्द्र, भरतेश्वर,दमदन्त १. वृहत्संहिता में इसका वर्णन है। विशेष के लिए देखिए-सानुवाद वस्तु सारप्रकरण (वत्थुसारपयरण) के पृ. १४७-४८ २. इसके लिए देखिए-लेखक का कर्मसिद्धान्तसम्बन्धी साहित्य, पृ० ९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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