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________________ २३८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जोगविहाण वीसिया (योगविधानविशिका) : __श्री हरिभद्र सूरि ने जो 'वीसवीसिया' लिखी है वह बीस विभागों में विभक्त है । उनमें से सत्रहवें विभाग का नाम 'जोगविहाणवीसियाहै। उसमें बीस गाथाएँ हैं । उसका विषय 'योग' है । गा० १ में कहा है कि जो प्रवृत्ति मुक्ति की ओर ले जाय वह 'योग' है। इस प्रकार यहाँ योग का लक्षण दिया गया है। गा० २ में योग के पाँच प्रकार गिनाये है : १. स्थान, २. ऊर्ण, ३. अर्थ, ४. आलंबन और ५. अनालम्बन ।२ इनमें से प्रथम दो 'कर्मयोग' हैं और अवशिष्ट तीन 'ज्ञानयोग' हैं। इन पांचों प्रकारों में से प्रत्येक के इच्छा, प्रवृत्ति, स्थैर्य और सिद्धि ऐसे चार-चार भेद हैं। इस प्रकार यहाँ योग के ८० भेदों का निरूपण किया गया है। गाथा ८ में अनुकम्पा, निर्वेद, संवेग और प्रशम का निर्देश है । इस तरह यहाँ तत्त्वार्थसूत्र , (अ० १, सू० २) की हारिभद्रीय टीका की भांति सम्यक्त्व के आस्तिक्य आदि पाँच लक्षण पश्चादानुपूर्वी से दिये हैं । गाथा १४ में कहा है कि तीर्थ के रक्षण के बहाने अशुद्ध प्रथा चालू रखने से तीर्थ का उच्छेद होता है। गाथा १७-२० में शुद्ध आचरण के चार प्रकारों का उल्लेख है। १. यह कृति वीसविसिया का एक अंश होने से उसके निम्नलिखित दो प्रकाशनों ___ में इसे स्थान मिला है : (अ) ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम का वीसवीसिया इत्यादि के साथ में सन् १९२७ का प्रकाशन । (आ) प्रो० के० वी० अभ्यंकर द्वारा सम्पादित और सन् १९३२ में प्रकाशित आवृत्ति । इस द्वितीय प्रकाशन में वीसवीसिया की संस्कृत-छाया, प्रस्तावना, अंग्रेजी टिप्पण और सारांश आदि दिये गये हैं। (इ) 'योगदर्शन तथा योगविशिका' नामक जो पुस्तक आत्मानन्द जैन पुस्तक प्रचारक मण्डल, आगरा से सन् १९२२ में प्रकाशित हुई है उसमें प्रस्तुत कृति, उसका न्यायाचार्यकृत विवरण तथा कृति का हिन्दी-सार दिया गया है। (ई) 'पातंजल योगदर्शन' पर 'योगानुभवसुखसागर' तथा हरिभद्रसूरिरचित 'योगविशिका गुर्जर भाषानुवाद' नामक ग्रन्थ श्रीमद् बुद्धिसागरसूरि जैन ज्ञानमन्दिर, विजापुर (उत्तर गुजरात) ने वि० सं० १९९७ में प्रकाशित किया है। उसमें ऋद्धिसागरसूरिकृत जोगविहाणवीसिया का अर्थ, भावार्थ एवं टीकार्थ दिया गया है। २. इन पांचों का षोडशक (षो० १३, ४) में निर्देश है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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