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________________ योग और अध्यात्म २३७ भ्रान्ति, अन्यमुद्, रोग और आसंग' के साथ तथा इसी श्लोक की वृत्ति में अद्वेष, जिज्ञासा, शुश्रूषा, श्रवण, बोध, मीमांसा, शुद्ध प्रतिपत्ति और प्रवृत्ति के साथ की है। इस प्रकार जो त्रिविध तुलना की गई है वह क्रमशः पतंजलि, भास्करबन्धु और दत्त के मन्तव्य प्रतीत होते हैं । टीका-यह सोमसुन्दरसूरि के शिष्य साधुराजगणी की ४५० श्लोक-परिमाण रचना है। यह अबतक अप्रकाशित है ।। ब्रह्मसिद्धिसमुच्चय : __ इसके प्रणेता आचार्य हरिभद्रसूरि हैं ऐसा मुनि श्री पुण्यविजयजी का मन्तव्य है और मुझे वह यथार्थ प्रतीत होता है । उनके मत से इसकी एक खण्डित ताड़पत्रीय प्रति जो उन्हें मिली थी वह विक्रम की बारहवीं शताब्दी में लिखी गई थी। इस संस्कृत ग्रन्थ के ४२३ पद्य ही मुश्किल से मिले हैं और वे भी पूर्ण नहीं हैं । आद्य पद्य में महावीर को नमस्कार करके ब्रह्मादि की प्रक्रिया, उसके सिद्धान्त के अनुसार, जताने की प्रतिज्ञा की है। इस ग्रन्थ का महत्त्व एक दृष्टि से यह है कि इसमें सर्व-दर्शनों का समन्वय साधा गया है । श्लोक ३९२-९४ में मृत्युसूचक चिह्नों का उल्लेख है । प्रस्तुत ग्रन्थ में हारिभद्रीय कृतियों में से जो कतिपय पद्य मिलते हैं उनका निर्देश श्री पुण्यविजयजी ने किया है, जैसेकि श्लोक ६२ ललितविस्तरा में आता है। षोडशक प्रकरण में अद्वेष, जिज्ञासा आदि आठ अंगों का जैसा उल्लेख है वैसा इसके श्लोक ३५ में भी है । इच्छायोग, शास्त्रयोग और सामर्थ्ययोग का जो निरूपण श्लोक १८८-१९१ में है वह ललितविस्तरा और योगदृष्टिसमुच्चय की याद दिलाता है । प्रस्तुत कृति के श्लोक ५४ में अपुनर्बन्धक का उल्लेख है । यह योगदृष्टिसमुच्चय में भी है। १. इन खेद आदि के स्पष्टीकरण के लिए देखिए-षोडशक ( षो० १४, श्लो० २-११)। २. देखिए-षोडशक (षो० १६, श्लो० १४) । ३. देखिए-समदर्शी आचार्य हरिभद्र, पृ० ८६. ४. पं० भानुविजयगणी ने योगदृष्टिसमुच्चयपीठिका नाम की कृति लिखी है जो प्रकाशित है। ५. यह नाम मुनि श्री पुण्यविजयजी ने दिया है । यह कृति प्रकाशित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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