SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मोपदेश २२५ हिओवएसकुलय (हितोपदेशकुलक ) : इस नाम की मुनिचन्द्रसूरि की दो रचनाएँ हैं । इन दोनों में जैन महाराष्ट्री में २५-२५ गाथाएँ हैं । इनमें हितकर उपदेश दिया गया है। उवएसकुलय ( उपदेशकुलक ) : यह भी मुनिचन्द्रसूरि की कृति है । इसमें ३३ गाथाएँ जैन महाराष्ट्री में हैं । इसमें 'शोक' को पिशाच कहकर उसे दूर करने का उपदेश दिया गया है। इसी से इसे 'सोगहर-उवएसकुलय' भी कहते हैं। इसमें धार्मिक उपदेश दिया गया है, अतः इसे 'धम्मोवएस' भी कहते हैं । नाणप्पयास (ज्ञानप्रकाश ) : अनेकविध स्तोत्र आदि के रचयिता खरतर जिनप्रभसुरि की यह अपभ्रंश रचना है। इसमें ११३ पद्य हैं। 'कुलक' के नाम से प्रसिद्ध इस कृति का विषय ज्ञान का निरूपण है। टोका-इसकी संस्कृत टीका के कर्ता का नाम अज्ञात है । धम्माधम्मवियार ( धर्माधर्मविचार ) : यह भी उपयुक्त जिनप्रभसूरि की अपभ्रंश रचना है। इसमें १८ पद्य हैं । इसका प्रारम्भ 'अह जण निसुणिज्जउ' से हुआ है। इसमें धर्म एवं अधर्म का स्वरूप स्पष्ट किया गया है । सुबोधप्रकरण : यह हरिभद्रसूरि की कृति है ऐसा कई मानते हैं, परन्तु अब तक यह अप्राप्य है। सामण्णगुणोवएसकुलय ( सामान्यगुणोपदेशकुलक ) : यह अंगुलसित्तरि इत्यादि के कर्ता उपयुक्त मुनिचन्द्रसूरि की जैन महाराष्ट्री में रचित २५ पद्यों की कृति है। इसमें सामान्य गुणों का उपदेश दिया गया होगा ऐसा इसके नाम से ज्ञात होता है। १. इस नाम की दो कृतियाँ प्रकरणसमुच्चय में अनुक्रम से २५-२७ और २७-२८ पत्रों पर छपी हैं । २. यह भी प्रकरणसमुच्चय ( पत्र ३६-८ ) में छपा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy