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________________ २२४ जैन साहित्य का बृहद इतिहास इसमें योग, काल की करालता, विषयों की विडम्बना और वैराग्यपोषक तत्त्वों का निरूपण है । पद्मानन्दशतक यानी वैराग्यशतक : यह धनदेव के पुत्र पद्मानन्द को विक्रीडित छन्द में हैं । इसमें वैराग्य का योगी एवं कामातुर जनों का स्वरूप बतलाया गया है । रचना है । इसमें १०३ पद्य शार्दूलप्रतिपादन किया गया है और सच्चे अणुसासणकुसकुलय (अनुशासनांकुशकुलक ) : अंगुलसत्तरि इत्यादि के प्रणेता मुनिचन्द्रसूरिरचित इस कृति में जैन महाराष्ट्री की २५ गाथाएँ हैं । इनका स्वर्गवास वि० सं० १९७८ में हुआ था । रणयत्तकुलय ( रत्नत्रयकुलक ) : यह भी उपर्युक्त मुनिचन्द्रसूरिरचित कुलक है । इसमें ३१ गाथाएँ हैं और उनमें देव, गुरु एवं धर्म- इन तीन तत्त्वों का - रत्नों का स्वरूप समझाया है । गाहाको ( गाथाकोश ) : इसे रसाउल तथा रसाउलगाहाकोस भी कहते हैं । यह भी उपयुक्त मुनि - चन्द्रसूरि की रचना है । इसका श्लोक - परिमाण ३८४ है । मोक्षोपदेशपंचाशत : यह भी मुनिचन्द्रसूरि की ५१ पद्य की कृति है । इसमें संसार को विषवृक्ष कहकर उसके मूल, शाखा आदि का उल्लेख किया गया है । इसके पश्चात् नरक आदि चार गतियों के दुःखों का वर्णन आता है । इसके बाद संसार, विवेक, देव ( परमेश्वर ), गुरु और धर्म का स्वरूप संक्षेप में दिया है । १. इसकी चौथी आवृत्ति 'काव्यमाला' गुच्छक ७ प्रकाशित हुई है । २. इस श्रेष्ठी ने जिनवल्लभसूरि का उपदेश सुनकर नागपुर ( नागोर ) में नेमिनाथ का चैत्यालय बनवाया था, यह प्रस्तुत कृति के १०२ वें श्लोक ज्ञात होता है । ३. यह कुलक प्रकरणसमुच्चय' के पत्र ४१-४३ में छपा I ४. यह कृति उपर्युक्त 'प्रकरणसमुच्चय' के पत्र १९ - २२ में छपा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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