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धर्मोपदेश
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अनुसार १३३० पद्य हैं। यह ९५ वज्जा अर्थात् पद्धति में विभक्त है, जैसे कि सोयार-वज्जा, गाहा-वज्जा इत्यादि । इसके बहुत-कुछ पद्य सुभाषित हैं। यह गाहा-सत्तसई का स्मरण कराता है। प्रस्तुत कृति में धर्म, अर्थ और काम इन तीन पुरुषार्थों का निरूपण आता है ।
टोका-इस पर रत्नदेवगणी ने एक टीका वि० सं० १३९३ में हरिभद्रसूरि के शिष्य धर्मचन्द्र की विज्ञप्ति से लिखी है। इस टीका में 'गउडवह' से उद्धरण दिये गये हैं।
नीतिधनद यानी नीतिशतक :
देहड के पुत्र धनद-धनदराज संघपति ने वि० सं० १४९० में मण्डप-- दुर्ग में यह लिखा है। इसी प्रकार उन्होंने वैराग्यशतक और शृंगारशतक भी लिखे हैं। इन तीनों को धनशतकत्रय अथवा धनदत्रिशती भी कहते हैं । इन तीनों में शृंगारशतक सबसे प्रथम लिखा गया है । यह उसके चौथे श्लोक से ज्ञात होता है। यह धनद खरतर जिनभद्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने नीतिशतक विविध छन्दों में लिखा है। इसमें १०३ श्लोक है। प्रथम श्लोक में कर्ता ने खरतरगच्छ के मुनि के पास उसका अभ्यास किया था तथा प्रस्तुत कृति का नाम 'नयधनद' है इस बात का उल्लेख किया है। इसके प्रारम्भ में नीति की महत्ता का वर्णन आता है । इसके बाद नपति की नीति के बारे में निरूपण है। राजा, मंत्री और सेवक कैसे होने चाहिए इस बात का भी इसमें उल्लेख है। वैराग्यधनद यानी वैराग्यशतक : ___ यह भी उपर्युक्त धनद की कृति है। इसकी रचना नीतिधनद के बाद हुई होगी ऐसा लगता है। इसमें १०८ पद्य हैं और वे स्रग्धरा छन्द में हैं। दूसरे श्लोक में इसे 'शमशतक' कहा है और कर्ता के श्रीमाल कुल का निर्देश है।
इसमें संस्कृत छाया, रत्नदेवगणी की टीका में से उद्धरण एवं प्रारम्भ के ९० पद्यों के पाठान्तर दिये गये हैं । इसमें प्रस्तावना आदि भी हैं।
प्रो० एन० ए० गोरे ने सन् १९४५ में प्रारम्भ के ३०० पद्य छपवाये थे। उसके बाद उन्होंने प्रारम्भ के २०० पद्य अंग्रेजी अनुवाद के साथ
सन् १९४७ में प्रकाशित किये हैं। १. यह शतक तथा धनदकृत वैराग्यशतक एवं शृंगारशतक काव्यमाला, गुच्छक.
१३ के द्वितीय संस्करण में छपे हैं।
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