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________________ २२२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ९२२ श्लोक हैं । यह बत्तीस प्रकरणों में विभक्त है। २३ वें प्रकरण में आप्त के स्वरूप का वर्णन करते समय वैदिक देवों की समालोचना की गई है। इसके अन्त के २१७ श्लोकों द्वारा श्रावकों के धर्म पर प्रकाश डाला गया है ।' सिन्दूरप्रकर : इसे सुक्तिमुक्तावली और सोमशतक भी कहते हैं। इसमें १०० पद्य हैं । इसके कर्ता 'शतार्थी' सोमप्रभसूरि हैं। ये विजयसिंहसूरि के शिष्य थे। इसमें देव, गुरु, धर्म, संघ, अहिंसा आदि पाँच महाव्रत, क्रोध आदि चार कषाय, दान,. शील, तप एवं भाव का निरूपण है। टोकाएँ-इसके टीकाकारों के नाम इस प्रकार हैं : गुणकीतिसूरि ( वि० सं० १६६७), चरित्रवर्धन (वि० सं० १५०५), जिनतिलकसूरि, धर्मचन्द्र, भावचरित्र, विमलसूरि और हर्षकीर्ति । कई विद्वान् इस नामावली में गुणाकरसूरि एवं प्रमोदकुशलगणी के नाम भी गिनाते हैं । सूक्तावली : पद्मानन्द महाकाव्य इत्यादि के रचयिता अमरचन्द्रसूरि की यह कृति है ऐसा चतुर्विंशतिप्रबन्ध ( पृ० १२६ )४ में कहा गया है, परन्तु इसकी एक भी हस्त-- लिखित प्रति नहीं मिलती। वज्जालग्ग : ____ इसे" पद्यालय, वज्रालय, विज्जाहल एवं विद्यालय भी कहते हैं । इसके कर्ता जयवल्लभ हैं। इसमें जैन महाराष्ट्री में रचित ७९५ और बड़ी वाचना के १. इसका गुजराती अनुवाद दयालजी गंगाधर भणसाली और भोगीलाल अमृत लाल झवेरी के संयुक्त प्रयास का परिणाम है । यह अनुवाद छपा है । इसका हिन्दी अनुवाद भी छप चुका है। इसके अतिरिक्त जर्मन भाषा में आर० श्मिट और जोहानिस हर्टल द्वारा किया गया अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका है। २. यह काव्यमाला ( गुच्छक ७ ) में प्रकाशित हुआ है। इसके अलावा हर्ष कीर्तिसूरिकृत टीका के साथ यह कृति सन् ११२४ में छपी है । ३. इसका पवोलिनी ने इटालियन भाषा में अनुवाद किया है । ४. फार्बस गुजराती सभा द्वारा प्रकाशित और मेरे द्वारा सम्पादित संस्करण का यह पृष्ठांक है। ५. यह कृति 'बिब्लिओथिका इण्डिका' कलकत्ता से तीन भागों में सन् १९१४, १९२३ और १९४४ में प्रो० ज्यूलियस लेबर ने प्रकाशित की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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