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________________ 'धर्मोपदेश २२१ प्रकाशित हो चुकी है। इस मूल वृत्ति पर एक दूसरी वृत्ति जयसोम के शिष्य गुणविनय ने वि० सं० १६५१ में लिखी है । इमके प्रारम्भ में पांच पद्य हैं और अन्त में चौंतीस पद्यों की प्रशस्ति तथा उसके पश्चात् वृत्तिकार की ग्यारह पद्यों की पट्टावली है।' ३. संबोहसत्तरि ( सम्बोधसप्तति ) : जैन महाराष्ट्री के ७० पद्यों में रचित इस कृति के कर्ता अंचल-गच्छ के जयशेखरसूरि हैं ऐसा जिनरत्नकोश (खण्ड १, पृ० ४२२ ) में उल्लेख है, परन्तु वह विचारणीय है । यह उपयुक्त कृति हो होगी ऐसा प्रतीत होता है । _____टोकाएँ-इस पर यशोविजयजी की टीका है । इसकी एक हस्तलिखित प्रति अहमदाबाद के विमलगच्छ के उपाश्रय में है। इसके अतिरिक्त एक अज्ञातकर्तृक अवचूरि की वि० सं० १५३७ की हस्तलिखित प्रति मिलती है । वि० सं० १५२८ में मेरुसुन्दर ने एक बालावबोध भी लिखा है । सुभाषितरत्नसन्दोह : ___ यह मथुरासंघ के माधवसेन के शिष्य अमितगति" की कृति है। इसमें १. इस मूल कृति का गुजराती अनुवाद कई स्थानों से प्रकाशित हुआ है। २. यह कृति गुणविनय के विवरण और बालावबोधसहित जैन आत्मानन्द सभा ने सन् १९२२ में प्रकाशित की है। ३. देखिए-जिनरत्नकोश (वि० १, पृ० ४२२)। यह जयशेखरसूरिकृत संबोहसत्तरि को टीका है ऐसा माना है। अवचूरि और बालावबोध के लिए -~-~~भी ऐसा हो मान लिया है। मुझे तो ये तीनों रत्नशेखरीय कृति पर हों ऐसा लगता है। ४. यह कृति काव्यमाला ( सन् १९०९, दूसरी आवृत्ति ) में छपी है । इसके अतिरिक्त हिन्दी अनुवाद के साथ यह कृति 'हरिभाई देवकरण ग्रन्थमाला' कलकत्ता ने सन् १९१७ में प्रकाशित की है। आर. श्मिट और जोहानिस हर्टल ने मूल कृति का सम्पादन करके जर्मन भाषा में अनुवाद किया है और Z. D. M. G. ( Vol. 59 & 61 ) में सन् १९०५ और १९०० में प्रकाशित हुआ है। इसके अतिरिक्त दयालजी गंगाधर भणसाली और भोगीलाल अमृतलाल झवेरीकृत गुजराती अनुवाद के साथ मूल कृति हीरजी गंगाधर भणसाली ने वि० सं० १९८८ में प्रकाशित की है। ५. इनकी विविध कृतियों का उल्लेख मैंने अपने 'जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास' ( खण्ड १, पृ० २४४-५ ) में किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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