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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आत्मबोधकुलक:
यह जयशेखरसूरि की रचना है । 'विद्यासागरश्रेष्ठिकथा :
५० पद्यों की यह कृति चैत्रगच्छ के गुणाकरसूरि ने लिखी है। गद्यगोदावरी :
यह यशोभद्र ने लिखी है ऐसा कई लोगों का मानना है । कुमारपालप्रन्बध:
यह सोमसुन्दरसूरि के शिष्य जिनमण्डनगणी की अंशतः गद्य में और अंशतः पद्य में २४५६ श्लोक-परिमाण वि० सं० १४९२ में रचित कृति है। इसमें कुमारपाल नृपति का अधिकार वर्णित है । दुवालसकुलय ( द्वादशकुलक) :
यह खरतर जिनवल्लभसूरि ने जैन महाराष्ट्री में भिन्न-भिन्न छन्दों में लिखा है। इसकी पद्य-संख्या २३२ है ।
टोकाएँ--इस पर ३३६३ श्लोक-परिमाण एक टीका जिनपाल ने वि० सं० १२९३ में लिखी है। इसके अतिरिक्त इस पर एक विवरण उपलब्ध है, जो भाण्डागारिक नेमिचन्द्र ने लिखा है ऐसा कई लोगों का मानना है ।
१. यह प्रबन्ध जैन आत्मानंद सभा ने वि० सं० १९७१ में प्रकाशित
किया है। २. यह जिनपाल की टीका के साथ 'जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फण्ड'
ने सन् १९३४ में प्रकाशित किया है।
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